परवेज़ अख़्तर/ सिवान: जिले के धनौती ओ पी थाना के खगौरा गांव के जामा मस्जिद के खातिबो ईमाम मौलाना अब्दुल सत्तार नूरी ने रमज़ानुल मुबारक की फ़ज़ीलत बयान करते हुए बताया कि सभी महीनों में सबसे अफ़ज़ल(सबसे बेहतर) रमज़ानुल मुबारक का महीना है। इस माह को अगर हम नेकियों की सीज़न कहें तो गलत नहीं है। ये अल्लाह-तआला का कितना बड़ा अहसान व करम है कि रमजानुल मुबारक में तमाम नफली नमाजों का दरजा फर्ज नमाजों के बराबर कर किया जाता है। सदका व ख़ैरात का सवाब (पुण्य) कई गुना बढ़ा दिया जाता है। रोजा एक तरह का सालाना कोर्स है, जिसके जरिए आदमी पर भूख के हालात पैदा हो जाते हैं। गरीबों की भलाई करना और अल्लाह तआला ने रमज़ान का महीना मुसलमानों को अता(दे करके) करके रोजा रखने का हुक्म इसलिए दिया कि मेरे बंदे दिनभर भूखे-प्यासे रहेंगे तो उन्हें गरीबों की भूख और प्यास का एहसास होगा और वे गरीबों का ख्याल रखेंगे।
ताकि उसके अंदर आजिज़ी(दीनता) व इन्किसारी(विनम्रता) और अल्लाह से दुआ व तौबा की हालात उभरे। हमारा रब हमें भूखा नहीं रखना चाहता, बल्कि वह तो हमारे अंदर तकवा(त्याग) व परहेज़गारी(संयम) पैदा कर हमारे अंदर छुपे इंसानियत को उजागर (दिखाना) करना चाहता है।हर मोमीन अपनी निजात की फिक्र में नजर आ रहा है। मोमीन रोजे रख कर नमाजों में सज्दे में सर रखकर अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांग रहा है, इसलिए कहा गया है कि रमज़ानुल मुबारक का महीना सभी महीनों अफज़ल(बेहतर) है। रमज़ान वह महीना है कि इसका अव्वल (शुरू के दस दिन) रहमत है और इसका औसत (दरमियान के दस दिन) मग़फ़िरत है और इसका आख़िर जहन्नम से आज़ादी है। जो अपने ग़ुलाम पर इस महीने में तख़फ़ीफ़ करे यानि काम में कमी करे अल्लाह तआला उसे बख़्श देगा और उसे जहन्नम से आज़ाद फ़रमाएगा।
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