परवेज अख्तर/सिवान :
सैया भईले कोतवाल, अब डर काहे का….! ठीक इसी तर्ज पर बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्री श्री मंगल पांडे का गृह जिला का सदर अस्पताल चल रहा है। जहां प्रत्येक कर्मी अपने आप को स्वास्थ्य मंत्री का संरक्षण प्राप्त होने का दावा कर गरीब तबके के मरीजों को डांट फटकार कर इलाज किया जा रहा है। ऐसी कारनामा करीब दो सप्ताह पूर्व से देखने व सुनने को मिल रही है।लेकिन शनिवार की देर संध्या यह साबित हो गया कि कहीं न कहीं सदर अस्पताल के चिकित्सक व कर्मियों का श्रेय स्वास्थ्य मंत्री से प्राप्त है। इन दिनों सदर अस्पताल प्रशासन द्वारा कहा जा रहा है की कोरोना संक्रमण को लेकर पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्ध है। लेकिन अस्पताल प्रशासन का यह दावा शनिवार की देर संध्या झूठा साबित हुआ।
जहां ऑक्सीजन के अभाव में हॉस्पिटल के बेड पर तड़प तड़प कर एक 26 वर्षीय नवयुवक ने अपनी जान गवा बैठी।उधर जैसे हीं नवयुवक के ऑक्सीजन के अभाव में मौत की सूचना उसके वृद्ध मां को लगी तो वे अस्पताल के फर्श पर तड़प तड़प कर बिलखना शुरू कर दिया।फर्श पर तड़प तड़प कर बिलख रही वृद्ध मां को देख कर भी स्वास्थ्य मंत्री का संरक्षण प्राप्त का हवाला देकर गरीबों को डांट फटकार कर इलाज करने वाले कर्मियों को दया तक नहीं आई। मानवता को शर्मसार करने वाली अब इससे बड़ी घटना क्या हो सकती है ! इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है।
यहां बताते चले कि सिवान जिले के जी. बी. नगर थाना क्षेत्र के दस्तली छपरा (नौरंगा) गांव निवासी विश्वनाथ भगत के पुत्र अजय कुमार भगत (26 वर्ष )जो किडनी रोग से ग्रसित था। परिजनों ने डायलिसिस के लिए अजय को सिवान शहर के एक डायलिसिस सेंटर में शनिवार को लाया था।कि इसी बीच ऑक्सीजन की कमी के कारण उन्हें चिकित्सकीय परामर्श के मद्देनजर आनन फानन में सिवान सदर अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ी। परिजनों का कहना है कि करीब आधे घंटे तक हम लोगों ने जी हुजूरी व दोनों हाथों को जोड़कर ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक से गुहार लगाते रहे। करीब आधे घंटे बाद इलाज शुरू किया गया। लेकिन आधे घंटे बाद सदर अस्पताल के बेड के समीप लगे ऑक्सीजन मशीन से ऑक्सीजन खत्म हो गया।उधर जैसे ही ऑक्सीजन खत्म होने की बात परिजनों ने ड्यूटी पर तैनात मौजूद कर्मियों से कही। तो परिजनों को कर्मियों द्वारा डांट फटकार दिया जा रहा था।
दूसरा ऑक्सीजन मशीन लगाने के लिए परिजन गुहार लगाते रहे लेकिन मौजूद चिकित्सक व कर्मियों द्वारा उनकी नहीं सुनी गई। जिस कारण हॉस्पिटल की बेड पर तड़प तड़प कर अजय ने अपनी जान गंवा बैठी। उधर अजय के मौत के बाद उसके परिजन करीब आधे घंटे तक शव ढोने वाली सरकारी एंबुलेंस के लिए चक्कर लगाते रहे। आधे घंटे बाद परिजनों को सरकारी शव ढोने वाली एंबुलेंस उपलब्ध हुई। उसके बाद परिजनों ने अजय का शव लेकर अपने गांव चले गए।बहरहाल चाहे जो हो इन दिनों सदर अस्पताल की हालात बद से बदतर है। यहां इलाज के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही हैै। मौजूद चिकित्सक द्वारा जैसे ही अस्पताल में कोई मरीज दाखिल हो रहा है तो उसे आंशिक रूप से प्राथमिक उपचार करने के बाद सिर्फ रेफर किया जा रहा है। रेफर के पश्चात कई गरीब तबकेेे के मरीज पैसेेे के अभाव में घंटों दर-दर भटक रहे। रेफर के दौरान असक्षम कई मरीजों की जान चली जा रही है।
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