पटना: बिहार मद्य निषेध और उत्पाद संशोधन विधेयक- 2022 विधानसभा में पेश किया जाना है. सरकार की तरफ से जो विधेयक पेश किया जायेगा उसकी कॉपी विधायकों को दी गई है,ताकी वे पढ़ सकें। विधेयक में बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम-2016 की धारा 37 का प्रतिस्थापन किया गया है. नए प्रावधान में शराब पीने पर पकड़े जाने पर जुर्माना देकर छोड़ा जा सकता है। जुर्माना नहीं चुकाने पर एक माह का साधारण कारावास हो सकता है।
नए प्रावधान में किसी स्थान या परिसर या बाहर में नशे की अवस्था में पाये जाते हैं तो उसे तुरंत गिरफ्तार किया जाएगा. इसके बाद नजदीकी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा. यदि वह राज्य सरकार द्वारा तय जुर्माने का भुगतान कर देता है तो उसे छोड़ दिया जाएगा. जुर्माने की राशि भुगतान करने में विफल होने पर उसे 1 माह का साधारण कारावास दिया जाएगा. अगर उसके पास कोई मादक पदार्थ मिलता है तो उसे धारा 57 के अनुसार जप्त कर नष्ट किया जाएगा. लेकिन बार-बार अपराध करने की दशा में सरकार अतिरिक्त जुर्माना या कारावास या दोनों कर सकती है.अभियुक्त को कोई अधिकार नहीं होगा कि उसे जुर्माने का भुगतान करने पर छोड़ दिया जाए. पुलिस पदाधिकारी या उत्पाद पदाधिकारी को प्रतिवेदन के आधार पर कार्यपालक मजिस्ट्रेट लिखित में कारणों को देख जुर्माना भुगतान करने पर भी छोड़ने से इंकार कर सकेगा.उसे ऐसे छुटकारा विशेष न्यायालय के समक्ष विचारण के परिणाम को प्रभावित नहीं करेगा।
इस धारा के अधीन सभी अपराध कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया द्वारा निष्पादित किए जाएंगे. द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट इन शक्तियों का प्रयोग करेंगे. राज्य सरकार ऐसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट की नियुक्ति उच्च न्यायालय के परामर्श से करेगी. इन मामलों की जांच उत्पाद पदाधिकारी या पुलिस पदाधिकारी जो सहायक अवर निरीक्षक की श्रेणी से नीचे के नहीं हों के द्वारा की जाएगी।
बिहार मद्य निषेध उत्पाद अधिनियम 2016 की धारा 81 के पश्चात अब एक नई धारा 81-ए का अंत स्थापन किया जाना है। इस धारा में परिवहन की चुनौतियों के कारण जब वस्तु या मादक द्रव्यों को सुरक्षित अभिरक्षा में रखना संभव न तो पुलिस पदाधिकारी या उत्पाद पदाधिकारी विशेष न्यायालय या कलेक्टर के आदेश के बिना भी एक छोटे नमूने को रखकर स्थल पर ही सारी मात्रा को नष्ट कर सकेगा. नए प्रावधान में इस अधिनियम के अधीन दंडनीय सभी अपराध धारा- 35 के अधीन अपराधों को छोड़कर की सुनवाई विशेष न्यायालय द्वारा की जायेगी। इसकी अध्यक्षता सत्र न्यायाधीश, अपर सत्र न्यायाधीश, सहायक सत्र न्यायाधीश या न्यायिक मजिस्ट्रेट कर सकेंगे.
जहां ऐसे मामलों के अधीन गिरफ्तार व्यक्ति अभी भी जेल में हैं तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा. यदि वह धारा 37 में उल्लिखित कारावास की अवधि पूरी कर चुके हों.ये न्यायाधीश राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से नियुक्त किए जाएंगे. हर एक जिला में कम से कम एक विशेष न्यायालय होगा. राज्य सरकार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को भी जो अपर सत्र न्यायाधीश रह चुके हो विशेष न्यायालय में पीठासीन होने के लिए नियुक्त कर सकेगी. आरोप पत्र समर्पित किए जाने की तिथि से 1 वर्ष के अंदर विशेष न्यायालय विचारण पूरा करेगा.
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