छपरा: बिहार में कुपोषण की समस्या अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है. वर्तमान में कोरोना संक्रमण के कारण आंगनबाड़ी केन्द्र बंद है, लेकिन इसके वाबजूद भी पोषण सेवाओं को सुचारू रूप से चलाया जा रहा है. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता घर-घर जाकर आईसीडीएस की सेवाओं को प्रदान कर रही है. इस लिहाज से भी सामुदायिक पोषण को सुनिश्चित करना अत्यंत जरुरी हो गया है. इस कड़ी में पोषण वाटिका का विषय महत्वपूर्ण एवं प्रसांगिक भी है. यद्यपि, पोषण वाटिका की सोच पहले भी रही है. उक्त बातें अतुल प्रसाद, अपर मुख्य सचिव, समाज कल्याण विभाग ने कृषि पोषण पर राज्य स्तरीय तीन दिवसीय वेबिनार सह आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए सोमवार को आयोजित पोषण वाटिका पर प्रशिक्षण के दौरान कही. अतुल प्रसाद, अपर मुख्य सचिव, समाज कल्याण विभाग ने बताया कि पहले चरण में फ़िलहाल राज्य के 4 जिलों में पोषण वाटिका का निर्माण किया गया है. जबकि दूसरे चरण में जिन आंगनबाड़ी केन्द्रों के पास अपना भवन होगा वहां पोषण वाटिका का निर्माण किया जाएगा. बिहार में सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों के पास अपने भवन एवं पोषण वाटिका के लिए जमीन उपलब्ध नहीं होने के कारण पोषण वाटिका की परिकल्पना को साकार करने में चुनौतियाँ रही हैं. साथ ही पोषण वाटिका के क्रियान्वयन की सम्पूर्ण जिम्मेदारी उठाने की समस्या भी इसकी सफलता में बाधक रही है. इसकी सफलता के लिए यह जरुरी है कि पोषण वाटिका को जन-आन्दोलन के रूप में अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी को भी बढाया जाए. जिन क्षेत्रों में आंगनबाड़ी केन्द्रों के पास अपनी जमीन नहीं हैं, वहाँ आम लोगों को चिन्हित कर उनके घर में पोषण वाटिका की शुरुआत करने की दिशा में लोगों को प्रेरित किया जाए. यह एक अच्छी पहल होगी, जिससे इस अभियान को जन-आन्दोलन के रूप में तब्दील करने में सहयोग मिलेगा.
‘अपनी, क्यारी अपनी थाली’ से बेहतर होगा पोषण
आईसीडीएस के निदेशक अलोक कुमार ने बताया कि कुपोषण, एनीमिया एवं अल्पवजन से समुदाय को बचाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा राज्यों में पोषण अभियान की शुरुआत की गयी है. बिहार में पोषण की स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में चिंताजनक है. लेकिन पोषण अभियान के तहत पिछले वर्ष सितम्बर माह में आयोजित पोषण माह में बिहार ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए देश भर में दूसरा स्थान हासिल किया था. इस दौरान राज्य भर में लगभग 6 करोड़ लोग इस अभियान से जुड़े थे. पोषण अभियान के तहत इनोवेशन पर भी बल दिया गया है. इस दिशा में राज्य के कृषि विश्वविद्यालयों से सहयोग लेकर पोषण वाटिका पर कार्य को आगे बढाया जा रहा है. ‘अपनी क्यारी, अपनी थाली’ का मुख्य उद्देश्य पोषण वाटिका के सहयोग से गर्भवतियों एवं बच्चों के पोषण में सुधार करना है, जिसमें बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर तकनीकी सहयोग भी प्रदान करेंगे. पोषण अभियान का लक्ष्य प्रतिवर्ष दुबलापन एवं नाटापन में 2% की कमी एवं एनीमिया में 3% की कमी लानी है, जिसमें पोषण वाटिका काफी सहयोगी साबित होगा.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय करेगा तकनीकी सहयोग
वेबिनार का उद्घाटन करते हुए डॉ. अजय कुमार सिंह, कुलपति बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर ने कहा कि बिहार कृषि विश्वविद्यालय में पोषण वाटिका के निर्माण में तकनीकी सहयोग प्रदान करेगी. डॉ. आरके सोहाने, निदेशक प्रसार शिक्षा, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर ने बताया कि अभी तक पोषण वाटिका के कारण गर्भवती महिलाओं, धात्री माताओं एवं बच्चों द्वारा पोषक सब्जियों एवं फलों के दैनिक सेवन में बढ़ोतरी हुयी जो कुपोषण कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल है. इससे स्वच्छता, साफ़ पानी के सेवन, डायरिया के दौरान देखभाल एवं एनीमिया प्रबंधन पर भी जागरूकता बढ़ाने में सफलता मिली है. इस दौरान विश्व बैंक के राज्य तकनीकी विशेषज्ञ मन्त्रेश्वर झा ने पोषण अभियान एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की जरूरत के ऊपर डॉ. मनोज कुमार, परामर्शी पोषण एवं स्वास्थ्य, राज्य सरकार के विषय में जानकारी दी. साथ ही ऊषा कुमारी, विभागाध्यक्ष, खाद्य एवं पोषण विभाग, सामुदायिक महाविद्यालय एवं डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर ने आहार विविधिता के द्वारा घर में तैयार भोजन से कुपोषित बच्चों का प्रबन्धन एवं डॉ. कुमारी शारदा, वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान, कृषि विज्ञान केंद्र, बाढ़ ने पोषण वाटिका के महत्व एवं प्रकार पर प्रकाश डाला. साथ ही डॉ. अनीता कुमारी, वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान, कृषि विज्ञान केंद्र, खगड़िया ने पोषण वाटिका के संरचना एवं रेखांकन पर प्रकाश डाला.
पोषण व्यवहार में बदलाव जरुरी
यूनीसेफ के पोषण विशेषज्ञ आरएन परही ने बताया कि राज्य में लोग कुपोषण की स्थिति से जीवन के विभिन्न आयु में सामना करते हैं, लेकिन विशेषकर 5 साल के अंदर के बच्चों में कुपोषण की स्थिति राज्य में अधिक है. राज्य में पांच साल से कम आयु के 42% बच्चे नाटेपन के शिकार हैं, जिसके लिए ठोस एवं सम्मलित प्रयास की जरूरत है. उन्होंने बताया कि सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी जैसे विटामिन ए, बी, बी12, आयरन एवं जिंक विशेषकर बचपन एवं किशोरावस्था में अधिक होती है. आईसीडीएस एवं बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर की पार्टनरशिप आंगनबाड़ी केन्द्रों में पोषण वाटिका की शुरुआत की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है. इससे 6 माह से 23 माह तक के बच्चों में संपूरक आहार की शुरुआत करने के व्यवहार में भी साकारात्मक परिवर्तन आएगा. साथ ही पोषण वाटिका की शुरुआत आहार की विवधिता को जन-आन्दोलन के रूप लेने की दिशा में भी प्रभावी साबित होगा. साथ ही इससे राज्य की कुपोषण दर में भी कमी आएगी. वेबिनार में शवेंद्र पांड्या, प्रोग्राम मैनेजर, यूनिसेफ बिहार के साथ डॉक्टर अंजनी कुमार, निदेशक, अटारी एवं राज्य भर के डीपीओ, आईसीडीएस, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, सीडीपीओ सहित आईसीडीएस के अन्य कर्मी शामिल हुए.
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