छपरा: स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने की दिशा में विभाग के द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है। मातृ मृत्यु व नवजात शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसी कड़ी में शुक्रवार को सदर अस्पताल में नवजात शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य संस्थानों में कार्यरत स्टाफ नर्स एएनएम को दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का शुभारंभ किया गया। प्रशिक्षण में प्रसव उपरांत माता की देखभाल व नवजात शिशु की देखभाल के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई। इस प्रशिक्षण में प्रत्येक प्रखंड से दो-दो एएनएम व जीएनएम को शामिल किया गया है। यह प्रशिक्षण सदर अस्पताल के चिकित्सक डॉ हरेंद्र कुमार, डॉ हर्षित कुमार तथा दिघवारा के डॉ रोशन कुमार के द्वारा दिया गया। डॉ हरेंद्र कुमार ने बताया कि छोटी-मोटी कारणों से नवजात शिशु की मौत हो सकती है, इसलिए जन्म के समय विशेष देखभाल की जरूरत है। उस वक्त संक्रमण से बचाव, तापीय सुरक्षा (थर्मल प्रोटेक्शन) पर विशेष ध्यान रखें। जन्म के बाद शिशु को मां के पेट के बाद किसी गर्म स्वच्छ व सूखी स्थान पर रखें। जितनी जल्द हो आंख को संक्रमण से बचाने के लिए जितनी जल्द हो पोछें और एक घंटे के भीतर एंटी माइक्रोबियल नेत्र दवा लगायें।
नवजात मृत्यु दर में आएगी कमी
जिला स्वास्थ समिति के डीपीएम अरविंद कुमार ने बताया कि नवजात शिशु सुरक्षा कार्यक्रम का उद्देश्य शिशु परिचर्चा और पुनर्जीवन में स्वास्थ्य कार्यकर्ता को प्रशिक्षित करना है। इस कार्यक्रम का शुभारंभ जन्म के समय परिचर्चा हाइपर्थर्मिया से बचाव स्तनपान शीघ्र आरंभ करना तथा बुनियादी नवजात पुनर्जीवन के लिए किया गया है। नवजात शिशु परिचर्चा और पुनर्जीवन किसी भी नवजात शिशु कार्यक्रम के लिए महत्वपूर्ण प्रारंभिक बिंदु है तथा जीवन में सर्वोत्तम शुरुआत सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। इस नई पहल का उद्देश्य है कि प्रत्येक प्रश्नों के समय बुनियाद नवजात शिशु परिचर्चा और पुनर्जीवन के लिए प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ता होना चाहिए। प्रशिक्षण 2 दिनों के लिए है तथा इससे जिले में महत्वपूर्ण रूप से नवजात मृत्यु दर में कमी आने की उम्मीद है।
जन्म के घँटे के अंदर स्तनपान जरूरी
डीपीएम ने बताया कि जन्म के शुरूआती एक घंटे के भीतर शिशुओं के लिए स्तनपान अमृत समान होता है। यह अवधि दो मायनों में अधिक महत्वपूर्ण है। पहला यह कि शुरुआती दो घंटे तक शिशु सर्वाधिक सक्रिय अवस्था में होता है। इस दौरान स्तनपान की शुरुआत कराने से शिशु आसानी से स्तनपान कर पाता है। सामान्य एवं सिजेरियन प्रसव दोनों स्थितियों में एक घंटे के भीतर ही स्तनपान कराने की सलाह दी जाती है। इससे शिशु के रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। जिससे बच्चे का निमोनिया एवं डायरिया जैसे गंभीर रोगों में भी बचाव होता है।
हाइपोथर्मिया से बचाव के लिए जरूरी है कंगारू मदर केयर
समय से पूर्व जन्मे नवजात यानी प्री-मेच्योर बेबी के बेहतर स्वास्थ्य और बीमारियों से बचाने के लिए सरकार लगातार कोशिश कर रही है। कंगारू मदर केयर के जरिए प्री-मेच्योर शिशुओं को हाइपोथर्मिया अर्थात सामान्य से शरीर का तापमान कम होना या शरीर ठंडा पड़ना, वजन कम होना आदि परेशानियों से बचाया जा सकता है। इसके प्रयास से शिशु मृत्यु दर में कमी लाई जा सकती है। तय समय से पहले जन्म और जन्म के समय वजन कम होना अक्सर देखा जाता है। यह शिशु सामान्य शिशु की तुलना में ज्यादा कोमल और कमजोर होते हैं और उन्हें कई तरह की बीमारियां होने का भी खतरा बना रहता है। ऐसे शिशुओं को गहन देखभाल की जरूरत होती है जिसे कंगारू मदर केयर विधि से देखभाल कर ठीक किया जा सकता है। इस तकनीक में नवजात शिशु (बगैर कपड़े के साथ) को मां के सीने पर कंगारू की तरह अपने से चिपकाकर लिटाया जाता है। करीब एक घंटे रोजाना यह किया जाता है, ताकि शिशु को मां के शरीर की गर्माहट मिल सके। इसमें शिशु के हाथ-पैर व पीठ को साफ कपड़ों से ढकना चाहिए। इसमें शिशु को गर्माहट मिलती है और तापमान का संतुलन बना रहता है।
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