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छपरा

कुपोषित व कमजोर शिशुओं की पहचान के लिए बाल विकास पदाधिकारियों को दिया गया प्रशिक्षण

  • आईएलए के मॉड्यूल 16,17 एवं 18 के बारे में दी गयी जानकारी
  • गृहभ्रमण पर दिया गया जोर
  • कंगारु मदर केयर की विधियों को बताया गया
  • नियमित स्तनपान में कंगारू मदर केयर होता है सहायक

छपरा: जिले में कुपोषित व बीमार बच्चों तथा कमजोर बच्चों की पहचान के लिए एक निजी होटल में जिला संसाधन समूह तथा जिले के सभी बाल विकास पदाधिकारियों को आईएलए के मॉड्यूल पर प्रशिक्षण दिया गया। जिसकी अध्यक्षता आईसीडीएस के डीपीओ वंदना पांडेय ने की । प्रशिक्षण के अंर्तगत उन्हें आईएलए के मॉड्यूल 16,17 एवं 18 के बारे में बताया गया। जिससे उनके क्षमता का विकास हो और पोषक क्षेत्र में कुपोषण जैसी बीमारी से निजात मिल सके। केयर इंडिया के डीटीओ –ऑन प्रणव कुमार कमल व अमनौर के सीडीपीओ ने मास्टर ट्रेनर के रूप में सभी बाल विकास परियोजना पदाधिकारियों को प्रशिक्षण दिया। इस मौके पर जिला कार्यक्रम पदाधिकारी वंदना पांडेय, केयर इंडिया के डीटीओ ऑन प्रणव कुमार कमल, पोषण अभियान के जिला समन्वयक सिद्धार्थ सिंह, जिला परियोजना सहायक आरती कुमारी समेत सभी सीडीपीओ मौजूद थी।

जिले में कुपोषण को कम करने की कवायद

जिला कार्यक्रम पदाधिकारी वंदना पांडेय ने बताया कि आईएलएस के मॉड्यूल 16 में बीमारी के दौरान शिशु का आहार कैसा हो, ऊपरी आहार में क्या हो, बीमारी के समय भी स्तनपान जैसी बातों को प्रशिक्षण में बताया गया है। वहीं मॉड्यूल 17 में कमजोर नवजात की पहचान ,प्रसव के ठीक बाद नवजात की देखभाल कैसे की जाए, गर्भावस्था के बाद हम ऐसा क्या करें कि महिला अपना दूसरा गर्भ टाल सके जैसी बातें व मॉड्यूल 18 में कुपोषण तथा उससे होने वाली मौत को कैसे टाला जा सके। इस मॉड्यूल से एईएस में भी काफी फायदा होगा।

गृह भ्रमण पर विशेष जोर देने की आवश्यकता

केयर इंडिया के डीटीओ ऑन प्रणव कुमार कमल ने कहा कि यह प्रशिक्षण तभी सफल हो पाएगा जब आंगनबाड़ी कार्यकर्ता गृहभ्रमण करेंगी। बाल विकास पदाधिकारी यह प्रशिक्षण अपने पोषण क्षेत्र की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को देंगी ताकि गृहभ्रमण के दौरान कुपोषण, बीमार बच्चे उनका खानपान तथा कमजोर नवजात तथा परिवार नियोजन कार्यक्रम को बढ़ावा मिल सके।

कंगारु मदर केयर से बच्चे का उचित विकास संभव

कमजोर नवजात बच्चों के लिए कंगारु मदर केयर एक ऐसी थेरेपी है जिससे बच्चा न सिर्फ कुपोषण से निकलता है बल्कि उसका उचित विकास भी होता है। इसमें करना सिर्फ इतना होता है कि मां अपने बच्चे को अपने सीने से चिपकाकर रखती है। जिससे बच्चे को गर्माहट मिलती है। वहीं छह माह के बच्चे को ऊपरी आहार देना बहुत जरूरी है। अगर कोई नवजात बीमार हो तो भी उसे स्तनपान कराना न भूलें।

बच्चों के सही पोषण के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में किया जा रहा जागरूक

पोषण अभियान के जिला समन्वयक सिद्धार्थ सिंह ने बताया कि कमजोर नवजात की देखभाल को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता कार्यक्रम चलाया जा रहा है। आंगनबाड़ी सेविका की मदद से गांव में जाकर लोगों को कमजोर नवजात की देखभाल से संबंधित उपाय बताए जा रहे हैं। कमजोर नवजात पैदा नहीं हों , इसको लेकर गर्भावस्था की शुरुआत से ही देखभाल की जरूरत होती है। इसके आलावा 6 माह तक बच्चों को केवल स्तनपान कराना, बच्चों को बोतल से दूध नहीं पिलाना , बच्चों को सम्पूर्ण टीकाकरण एवं बच्चों को समय से विटामिन-ए की खुराक पिलाना व मोड्यूल 6 के अनुसार बच्चों के सही पोषण के लिए आवश्यक है। 6 माह पूर्ण होने के बाद शिशु को अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है। इस दौरान उनका शारीरिक एवं मानसिक विकास तेजी से होता है। इसके लिए सिर्फ स्तनपान पर्याप्त नहीं होता है। इसलिए 6 माह के बाद स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार की भी जरूरत होती है। बच्चों को गाढ़ी दाल, अनाज, हरी पत्तेदार सब्जियां, मौसमी फल और दूध व दूध से बना उत्पाद खिलाया जाता है। तरल व पानी वाला भोजन जैसे दाल का पानी या मांड आदि न देकर उतना ही अर्द्ध ठोस आहार दिया जाता है, जितना बच्चा खा सके।

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