✍️परवेज अख्तर/एडिटर इन चीफ:
किस्मत के खेल निराले मेरे भैया, किस्मत का लिखा कौन टाले मेरे भैया,किस्मत के खेल निराले मेरे भैया, किस्मत के हाथ में दुनिया की डोर है,किस्मत के आगे तेरा कोई न जोर है,सब कुछ है उसी के हवाले मेरे भैया,किस्मत के खेल निराले मेरे भैया…….. धैर्य़, धीरज, सब्र…कुछ भी कहिए लेकिन एक मंत्र को अपने जीवन में उतार लीजिए कि संकट और असफलता की घड़ी में हमेशा धैर्य़ व धीरज से काम लीजिए।अक्सर हमारे प्रयासों की विफलता हमें सफलता के पथ से भटका देती है।हम हार से नहीं हारते।हार के भय से हार जाते हैं।यहां बता दूं कि नकारात्मक सोच से ही हमारी पराजय होती है।प्रयासों की कमी से ही सफलता हमसे छिटक जाती है।सफलता कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया होती है जो आजीवन निरंतर चलती रहती है। सफलता का कारवां,सकारात्मक सोच से आगे बढ़ता रहता है।एक बार जब आप एक लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं तो आप अगले लक्ष्य की तरफ अग्रसर हो जाते हैं।इस प्रकार सफलता हमारे जीवन की यात्रा बन जाती है।किंतु सफलता सबके हिस्से में आती हो ,ऐसा भी तो नहीं होता।
असल में सफलता अक्सर हमसे इसलिए दूर रह जाती है क्योंकि हम उसके लिए उतने प्रयास नहीं करते।उसे पाने के लिए उतनी मेहनत नहीं करते जितनी की उस लक्ष्य को सफलतापूर्वक पाने के लिए चाहिए। हम अक्सर मंज़िल पाने से पहले ही थक जाते हैं और संघर्षों की राह से विमुख हो जाते हैं।यहां हम बात करते हैं नई सोच,नई उमंग के साथ उभरे समाजसेवी रईस खान की।इन दिनों अचानक यह नाम सिवान जिले के कोने कोने में मशहूर होते जा रहा है।सिवान के संपूर्ण हिस्सों में निवास करने वाले हर तबके के निरीह व गरीब आम जनमानस जब संकट में पड़ रहे हैं तो उस संकट से उभरने के लिए लोग ऊपर वाले का नाम लेते हुए रईस खान की तलाश कर रहे हैं।पूर्व में इनकी अपराधिक पृष्ठभूमि से हर कोई वाकिफ है लेकिन जब सुबह का भूला हुआ बच्चा,शाम को अपने घर वापस लौट आ जाता है तो उसे भूला हुआ नहीं कहा जाता।रईस खान बताते हैं कि मुझे अचानक अरस्तु का कथन याद आया कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तो यह बातें मेरे मन में खटकने लगी और दूसरी तरफ उन्होंने कहा कि मैंने बचपन में सुना था की जबसे सूझे तबसे बुझे।भोजपुरी की यह लोकोक्ति मेरे दिलो दिमाग में बैठ गई और मैं सामाजिक प्राणी होने के नाते समाज के हरेक तबके की लोगों की मदद पहुंचाने की मंशा पाल रखी।
रईस खान की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए पहले मैं आपको बता दूं कि रामायण लिखने से पहले वाल्मीकि जी एक पहले एक डाकू थे।महर्षि वाल्मीकि का मूल नाम रत्नाकर था और इनके पिता ब्रह्माजी के मानस पुत्र प्रचेता थे।एक भीलनी ने बचपन में इनका अपहरण कर लिया और भील समाज में इनका लालन पालन हुआ।भील परिवार के लोग जंगल के रास्ते से गुजरने वालों को लूट लिया करते थे।रत्नाकर ने भी परिवार के साथ डकैती और लूटपाट का काम करना शुरू कर दिया।महर्षि वाल्मीकि से भी अच्छी थी उनकी लिखी रामायण,एक दिन संयोगवश नारद मुनि जंगल में उसी रास्ते गुजर रहे थे जहां रत्नाकर रहते थे।डाकू रत्नाकर ने नारद मुनि को पकड़ लिया। इस घटना के बाद डाकू रत्नाकर के जीवन में ऐसा बदलाव आया कि वह डाकू से महर्षि बन गए।दरअसल जब वाल्मीकि ने नारद मुनि को बंदी बनाया तो नारद मुनि ने कहा कि, तुम जो यह पाप कर्म करके परिवार का पालन कर रहे हो क्या उसके भागीदार तुम्हारे परिवार के लोग बनेंगे,जरा उनसे पूछ लो।वाल्मीकि को विश्वास था कि सभी उनके साथ पाप में बराबर के भागीदार बनेंगे,लेकिन जब सभी ने कहा कि नहीं,अपने पाप के भागीदार तो केवल तुम ही बनोगे तो वाल्मीकि का संसार से मोह भंग हो गया।
और उनके अंदर महर्षि प्रचेता के गुण और रक्त ने जोर मारना शुरू कर दिया और उन्होंने नारद मुनि से मुक्ति का उपाय पूछा।नारद मुनि से वाल्मीकि को मिला यह मंत्र नारद मुनि ने रत्नाकर को राम नाम का मंत्र दिया।लेकिन जीवन भर मारो काटो कहने वाले रत्नाकर के मुंह से राम नाम निकल ही नहीं रहा था।नारद मुनि ने कहा तुम मरा-मरा बोलो इसी से तुम्हें राम मिल जाएंगे।इस मंत्र को बोलते- बोलते रत्नाकर राम में ऐसे रमे कि तपस्या में कब लीन हो गए और उनके शरीर पर कब दीमकों ने बांबी बना ली उन्हें पता ही नहीं चला।इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने दर्शन दिए और इनके शरीर पर लगे बांबी को देखा तो रत्नाकर को वाल्मीकि नाम दिया और यह इस नाम से प्रसिद्ध हुए।ठीक उसी तरह हमारी कलम ने यहां समाज की सेवा भाव से उभरे रईस खान को बाल्मीकि शब्द से उल्लेखित किया है।
यहां बताते चलें कि फिलहाल सिवान में समाजसेवी बनकर उभरे रईस खान इन दिनों काफी सुर्खियों में है।इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।रईस खान बताते हैं कि मुझे साधारण तरीके से सामाजिक प्राणी होने के नाते समाज की सेवा भाव करने की मंशा थी लेकिन समाज के प्रबुद्ध लोगों के द्वारा मुझे एमएलसी पद के लिए होने जा रहे चुनाव में अपनी भाग्य आजमाने को लेकर सलाह दी गई।जिस कारण मैं आम जनमानस के बदौलत चुनावी मैदान में हूं।पुनः हमारी कलम आप सभी को बाल्मीकि जी के जीवन काल की ओर ले जाने पर विवश है।उल्लेखनीय हो कि अंत में बाल्मीकि जी को ब्रह्मा जी ने इन्हें रामायण की रचना करने की प्रेरणा दी।
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