छपरा : “आंगनबाड़ी केंद्र पर बच्चों की अच्छे से पढ़ाई नहीं होती। भोजन की गुणवत्ता भी अच्छी नहीं है”. कुछ ऐसी भ्रामक सोच रखने वाले लोगों के मन से सारण जिले के बनियापुर प्रखंड के नौवाकला पंचायत के आंगनबाड़ी केंद्र संख्या 7 के सेविका रामावती देवी सेविका रामावती को इस भ्रम को दूर करने व लोगों के विश्वास जीतने में कामयाब मिली है। उनके प्रयासों का असर अब उनके पोषक क्षेत्र के सभी लोगों के बीच दिखने लगा है। इस बदलाव की सूत्रधार तो रामावती ही रही, लेकिन इस मुहिम में उन्हें अपने गाँव के कुछ प्रबुद्ध लोगों का भी साथ मिला। सभी के छोटे-छोटे प्रयास जुड़ते गए जो अब नित्य नए बदलाव की कहानी लिख रही है।
कुपोषित बच्चों की कर रही है पहचान:
सेविका रामावती देवी बताती हैं कि गृह भ्रमण के दौरान वह अपने क्षेत्र के कमजोर और नवजात बच्चों की पहचान करती है। अगर कोई बच्चा कमजोर या कुपोषित मिलता है तो उसे पौष्टिक आहार देने के लिए उसके माता पिता को जागरूक करती हैं। इसके साथ-साथ हीं बच्चे को खाना खिलाते समय साफ-सफाई का विशेष रूप से ख्याल रखने के लिए प्रेरित करती हैं तथा यह कहती है कि साबुन से हाथ धोने के बाद हीं बच्चे को खाना खिलायें।बच्चे को दिन में चार बार पौष्टिक आहार देना चाहिए।
सेविका के प्रयास से हुआ ये बदलाव
बनियापुर के नवाकलां पोषक क्षेत्र में सेविका रामावती देवी के बदौलत पोषण स्तर में काफी बदलाव हुआ है। उनके क्षेत्र में 27 बच्चा हरा, 4 पीला, 2 लाल श्रेणी में है। वहीं 7 गर्भवती महिलाओं में से मात्र एक महिला को खून की कमी पायी गयी है। जिससे पौष्टिक आहार लेने की सलाह दी गयी है।
क्या है जिले की स्थिति
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 वर्ष 2015-16 के अनुसार जिले में छह माह तक के 73.8 प्रतिशत बच्चे सिर्फ स्तनपान करते हैं। 6 से 8 माह तक के 34.9 प्रतिशत बच्चे हीं स्तनपान के साथ पूरक आहार लेते है। वहीं जिले में 15 से 49 वर्ष तक के 50.4 प्रतिशत गर्भवती महिलाए एनिमिया की शिकार है। इस स्थिति में यह बदलाव कहीं न कहीं जिले के पोषण स्तर में सुधार का एक अच्छा उदाहरण है।
ग्रोथ चार्ट से बच्चों के कुपोषण की निगरानी
कुपोषण से निपटने के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों में ग्रोथ चार्ट बनाया जाता है। ग्रोथ चार्ट में बच्चों की लंबाई, चौड़ाई, वजन सहित सभी विवरण विस्तार से हर महीने दर्ज किए जाते हैं। इस चार्ट की सहायता से आप बच्चे के जन्म के वजन के आधार पर अपने बच्चे का आदर्श वजन का निर्धारण कर सकते हैं।
मुश्किल तो था, पर कोशिश पर यकीन भी था
” आंगनबाड़ी केंद्र बच्चों की शिक्षा की बुनियाद खड़ी करती है। लेकिन यदि यही बुनियाद कमजोर हो जाए तो बच्चे का आगे का जीवन अंधकारमय हो जाता है। मैंने यही बात घर-घर जाकर लोगों को समझाई। कुछ तो आसानी से समझ गए, लेकिन कुछ लोगों को समझाने में दिक्कतें बहुत आयी। मुझे फ़िर भी यह यकीन था कि मेरी कोशिशें एक दिन बदलाव जरूर लाएगी। आज वह बदलाव आ चुका है। आंगनवाड़ी के खाली पड़े कमरों में अब बच्चों की खेलने की आवाजें रोज गूँजती है। अब तो घर के परिवार वाले ख़ुद ही बच्चों को केंद्र पहुंचाने आते हैं”. यह कहते हुए रामावती के चहेरे पर किसी लंबे जंग को जीतने वाली खुशी को देखा जा सकता था।
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