छपरा: वैश्विक महामारी के उस दौर में जब निजी अस्पतालों में ताला लटका हुआ था, लोग अपने-अपने घरों में कैद थे। तब सदर अस्पताल के एसएनसीयू की स्टाफ नर्स प्रतिमा सिंह नवजात शिशुओं के लिए जीवन रक्षक बनकर अपने कर्तव्यों का बखूबी निवर्हन कर रही थी। कोरोना काल में सदर अस्पताल का नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) नवजात के लिए वरदान साबित हुआ। इस वार्ड में मार्च माह से लेकर जुलाई तक 454 नवजात शिशुओं को नया जीवनदान मिला है। इसमें एसएनसीयू इंचार्ज प्रतिमा सिंह का योगदान काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपनी कार्य क्षमता की बदौलत नवजातों को नया जीवनदान देने में अहम भूमिका निभायी है। इस वार्ड में जन्मजात बीमारियों व जन्म के बाद बच्चों को होने वाली बीमारियों का इलाज होता है। एसएनसीयू में रेडिएंट वार्मर, आक्सीजन कंसंट्रेटर, फोटोथेरेपी, पल्स आक्सीमीटर तथा इंफ्यूजन पंप आदि आधुनिक चिकित्सीय उपकरण मौजूद हैं। इन्हीं उपकरणों के सहारे जन्म लेने के बाद मौत से जूझते बच्चों को नया जीवन प्रदान किया जाता है।
आधुनिक सुविधाओं से लैस है एसएनसीयू वार्ड
जिला स्वास्थ्य समिति के डीपीएम अरविन्द कुमार ने बताया कि नवजात शिशुओं के इलाज के लिए सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हैं । जरूरी मशीनें सुविधाएं यहाँ के एसएनसीयू में उपलब्ध हैं । इस वजह से आसपास के जिले से भी बच्चों को यहाँ भेजा जाता है। इसके अलावा नवजात शिशुओं को सभी प्रकार की दवाइयां भी यहां उपलब्ध कराई जाती हैं । उसमें से कुछ दवाएँ महंगी भी होती हैं जो निःशुल्क प्रदान करायी जाती है। अस्पताल से छूटते समय नवजात की माताओं को पोषण की जानकारी, साफ सफाई की जरूरतें इत्यादि की भी जानकारी दी जाती है।
नवजातों में होने वाली जटिलताओं की पहचान
सिविल सर्जन डॉ. जेपी सुकुमार ने कहा नवजातों में होने वाली स्वास्थ्य जटिलताओं की पहचान कर उन्हें बचाया जा सकता है। इस दिशा में गृह आधारित नवजात देखभाल कार्यक्रम के तहत आशा घर-घर जाकर परिवार के लोगों को नवजात में होने वाली स्वास्थ्य जटिलताओं की जानकारी दे रही हैं । साथ ही जन्म के समय 1800 ग्राम या उससे कम वजन के नवजात एवं 34 सप्ताह से पूर्व जन्म लिए नवजातों को बेहतर देखभाल प्रदान करने के उद्देश्य से सभी जिला अस्पतालों में सिक न्यू बोर्न यूनिट(एसएनसीयू) की स्थापना की गयी है। इससे नवजातों को नया जीवनदान मिल रहा है।
42 दिनों तक किया जाता है फॉलोअप
एसएनसीयू की के इंचार्ज प्रतिमा सिंह ने बताया कि यहां से डिस्चार्ज बच्चों का 42 दिनों तक फॉलोअप किया जाता है। न्यू बॉर्न केयर यूनिट एसएनसीयू से भी डिस्चार्ज होने वाले बच्चों की डेढ़ माह तक तक निगरानी होती है। क्षेत्र की आशा कार्यकर्ता की मदद से ऐसे बच्चों को निगरानी की जा रही है। वहीं एचबीएनसी (होम बेस्ड न्यू बोर्न केयर) कार्यक्रम के तहत शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के उद्देश्य से जन्म के 42 दिनों की अवधि में आशा छह से सात बार गृह भ्रमण कर रही हैं। ताकि खतरे के लक्षण वाले नवजात की पहचान कर समय पर उनका उपचार कराया जा सके। एसएनसीयू से डिस्चार्ज नवजात का 24 घंटे के अंदर पहला भ्रमण कर रही हैं। तीसरे, सातवें, पांचवें, छठे भ्रमण के लिए 14वें, 21वें, 28वें और 42वें दिन फॉलोअप किया जा रहा है। किसी भी तरह की समस्या होने पर स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र और आवश्यकता हुई सदर अस्पताल लाकर इलाज हो सकेगा।
क्या है आंकड़ा: ( किस माह में कितने शिशुओं का हुआ उपचार)
लक्षण को कैसे पहचाने
नवजात के बेहतर स्वास्थ्य का ऐसे रखें ख्याल
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