परवेज अख्तर/एडिटर-इन-चीफ :
बिहार का सारण ज़िला के मशरक प्रखंड के ‘धर्माशती गंडामन’ गांव में एक सरकारी प्राइमरी स्कूल है। 16 जुलाई, 2013 की दोपहर रोज़ की तरह मिड-डे मील योजना के तहत बच्चों के लिए खाना बनाया जा रहा था। खाना बनाने वाली कुक ‘पन्ना देवी’ ने कढ़ाही में तेल डाला तो उसे कुछ अजीब सी महक आई। तेल का रंग भी काला हो गया था।पन्ना देवी ने प्रिंसिपल ‘मीना देवी’ को ये बात बताई। प्रिंसिपल ने कहा कि तेल तो उन्होंने अपनी ही दुकान से मंगवाया है।हो सकता है तेल पुराना हो क्योंकि सरसों का पुराना तेल कभी-कभी काला पड़ जाता है।कुक ने प्रिंसिपल के कहे अनुसार खाना बना दिया। खाने में उस दिन आलू-सोयाबीन की तरी वाली सब्ज़ी और चावल थे।
मिड-डे मील योजना के कई लाभ हैं. जैसे, वंचित वर्गों के बच्चों को स्कूल की तरफ़ आकर्षित करना
लंच की घंटी बजी और बच्चे लाइन लगाकर खाने के लिए बैठ गए. बच्चों ने खाना खाया तो उन्हें उसका स्वाद कुछ अजीब लगा। बच्चों ने प्रिंसिपल से इस बारे में शिकायत की।प्रिंसिपल साहिबा को लगा कि बच्चे खाना ना खाने के लिए बहाना बना रहे हैं।उन्होंने बच्चों को डांटकर कहा कि खाना ठीक है और वो उसे ख़ा लें।
खाना खाने के 30 मिनट बाद बच्चों के पेट में दर्द शुरू हो गया। देखते ही देखते सभी बच्चों की तबीयत बिगड़ने लगी। कुछ बच्चों को उल्टियां होने लगीं।ये देखकर स्कूल के शिक्षक घबरा गए।स्कूल में कोई मेडिकल व्यवस्था तो थी नहीं।इसलिए बीमार बच्चों के मां-बाप को बोला गया कि उन्हें हॉस्पिटल ले ज़ाया जाए।कुछ ही देर में कक्षा 1 से 5 के 16 बच्चों ने स्कूल में ही दम तोड़ दिया।4 बच्चों को हॉस्पिटल पहुंचते ही मृत घोषित कर दिया गया। हॉस्पिटल में भर्ती हुए बच्चों में से 3 ने अगले कुछ दिनों में दम तोड़ दिया. मरने वालों में 2 बच्चे कुक ‘पन्ना देवी’ के थे। कुल मिलाकर 23 बच्चों की मौत हो गई।
तत्काल प्रतिक्रिया
इस घटना से पूरे ज़िले में आक्रोश फैल गया। एक ही परिवार के 9 बच्चे मारे गए थे। कितने ही घरों के चिराग़ उजड़ गए थे।घटना के अगले दिन यानी 17 जुलाई को गांव के लोगों ने स्कूल प्रशासन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुरू कर दिया। लोग इतने ग़ुस्से में थे कि मृतक बच्चों के शव स्कूल के आंगन में ही दफ़ना दिए।गुस्साई भीड़ ने पुलिस स्टेशन पर पथराव किया और पुलिस की 4 गाड़ियों में आग लगा दी।रेलवे लाइन को ब्लॉक कर दिया। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पुतले फूंके गए।ज़िले और प्रदेश के बाक़ी स्कूलों से ये मांग आने लगी कि मिड-डे मील योजना ही बंद कर दी जाए।
बिहार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री पी.के. शाही ने बयान दिया
‘बिहार में 73 हज़ार प्राइमरी स्कूल हैं. यह संभव नहीं है कि हर बार बच्चों के खाने से पहले भोजन की जांच की जाए’
उन्होंने आगे कहा, ‘बच्चों की मृत्यु होना दुखद है. लेकिन यह एक साज़िश हो सकती है। खाने का सामान प्रिंसिपल मीना देवी के पति अर्जुन राय की दुकान से आया था।उनका रिश्ता विपक्षी दल से है. इस मामले की जांच कराई जाएगी।
घटना के बाद बिहार सरकार तुरंत हरकत में आई। मुख्यमंत्री ने मृतक बच्चों के परिवार वालों को 2-2 लाख का मुआवज़ा देने की घोषणा की।एक इमरजेंसी मीटिंग बुलाई गई. फ़ॉरेंसिक एक्सपर्ट्स की टीम को इस घटना की जांच के लिए भेजा गया।तत्काल प्रभाव से प्रिंसिपल मीना देवी को सस्पेंड कर दिया गया। मीना देवी और उनके पति ‘अर्जुन राय’ पर क्रिमिनल नेग्लिजेंस यानि आपराधिक लापरवाही के आरोप में FIR दर्ज करवाई गई. घटना के तुरंत बाद पति-पत्नी फ़रार हो गए।24 जुलाई को पुलिस ने उन्हें छपरा से पकड़ा।पुलिस द्वारा उनके ऊपर मर्डर और क्रिमिनल कॉन्सपिरेसी का चार्ज लगाया गया।
तहक़ीक़ात
इन्वेस्टिगेशन के लिए टीम मौक़ा-ए-वारदात पर पहुंची। फ़ॉरेंसिक एक्सपर्ट्स ने बचे हुए खाने के सैम्पल इकट्ठा किए।उन्हें जांच के लिए भेजा गया।शुरुआती जांच से पता चला कि खाने में ‘ऑर्गेनो-फ़ॉस्फ़ेट’ मौजूद था। ये एक क़िस्म का कीटनाशक है।
पटना मेडिकल कॉलेज के सुपरिटेंडेंट डॉक्टर अमर कांत झा ने बताया कि जो बच्चे इलाज के लिए उनके पास हॉस्पिटल में लाए गए थे, उनके मुंह से टॉक्सिक वेपर (गंध) निकल रही थी। यह देखकर उनकी टीम को अंदेशा हुआ कि ये ऑर्गेनो-फ़ॉस्फ़ेट की पॉइज़निंग के लक्षण हैं।
इस तहक़ीक़ात के इंचार्ज थे SP विनय कुमार। उन्होंने 2017 में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए एक इंटरव्यू में इस हादसे के पीछे की कहानी बताई-
घटना के दिन यानि 16 जुलाई को स्कूल में एक कार्यक्रम रखा गया था।प्रिंसिपल मीना देवी और उनके पति अर्जुन राय उस दिन बच्चों को किताबें बांटने वाले थे। इसकी सूचना अर्जुन राय ने बच्चों के परिवार वालों को पहले से दे रखी थी।इसी कारण घटना के दिन सामान्य से ज़्यादा बच्चे स्कूल आए थे। स्कूल में एक बरामदा था, जहां खाना पकाया जाता था। रोज़ की तरह कुक पन्ना देवी ने प्रिंसिपल से खाना पकाने के लिए तेल मांगा।स्कूल में जगह ना होने के कारण मिड-डे मील का राशन प्रिंसिपल के घर पर रखा रहता था. उनका घर स्कूल से 600 मीटर की दूरी पर था
मीना देवी ने कुक को अपने घर भेजा और खाने का तेल मंगाया. उसी दिन अर्जुन राय गन्ने की फसल के लिए कीटनाशक ‘मोनो क्रोटोफ़ोस’ की दो बोतलें ख़रीद कर लाया था। उसने वो दो बोतल भी स्कूल के राशन के साथ रख दी थीं. जब कुक घर पहुंची तो उसने कीटनाशक की बोतल देखी।वो उसे सरसों का तेल समझकर स्कूल ले आई। सरसों का तेल और ‘मोनो क्रोटोफ़ोस’ देखने में एक जैसे ही लगते हैं। बाद में इसी कीटनाशक का उपयोग खाना बनाने के लिए किया गया जिससे ये हादसा हुआ।
विनय कुमार ने बाद में बताया कि उस समय सिचुएशन बहुत नाज़ुक थी।पब्लिक ग़ुस्से में थी। पुलिस पर बहुत दबाव था कि इस घटना को एक षड्यंत्र साबित किया जाए। इतनी भयंकर घटना को केवल एक हादसा या लापरवाही मान लेना, लोगों को स्वीकार नहीं था।
विनय कुमार बताते हैं कि ये एक लापरवाही ज़रूर थी, पर कोई षड्यंत्र नहीं। खाने के सामान के साथ कीटनाशक रखना हो. या फिर कुक और बच्चों की बात पर ध्यान ना देना। प्रिंसिपल और उनके पति से गलती हुई थी। लेकिन किसी ने भी जानबूझ कर ऐसा किया हो, इसके कोई सबूत नहीं हैं।
कोर्ट ट्रायल
25 अगस्त, 2016 को इस मामले में मीना देवी को सजा हुई. छपरा कोर्ट के एडिशनल जज वी.ए. तिवारी ने पुलिस की इन्वेस्टिगेशन के आधार पर मीना देवी को दोषी करार दिया। उसे कल्पेबल होमिसाइड यानि गैर इरादतन हत्या और ‘अटेम्प्ट टू कमिट कल्पेबल होमिसाइड’ यानि गैर इरादतन हत्या के प्रयास का दोषी पाया गया. इस मामले में मीना देवी को 17 साल कारावास की सजा सुनाई गई।उस पर 3.75 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया. सबूतों के अभाव में अर्जुन राय को रिहा कर दिया गया।इस घटना के बाद प्रदेश के बाक़ी स्कूलों में मिड दे मील को लेकर बच्चों और परिवार वालों के मन में डर बैठ गया। बहुत से स्कूलों में बच्चों ने खाना खाने से मना कर दिया।कई लोगों की ये प्रतिक्रिया आई कि मिड दे मील योजना को बंद कर दिया जाना चाहिए।
इन सब घटनाओं के बावजूद सरकार ने इस योजना को जारी रखा है. और ये योजना आज तक चल रही है. हालांकि इस घटना के बाद मिड-डे मील को लेकर कुछ सख़्त नियम बनाए गए. जैसे राशन की हर सप्लाई में से एक सैम्पल को भविष्य में टेस्टिंग के लिए बचाकर रखना. इसके अलावा एक और नियम बनाया गया. बच्चों को खाना देने से पहले प्रिंसिपल और शिक्षक उसे टेस्ट करेंगे. ये देखने के लिए कि भोजन ठीक है.
क़ानून के कुछ दायरे होते हैं. उसके हिसाब से इस घटना के दोषियों को सजा मिल गई. हम इंसानों का एक मनोवैज्ञानिक पक्ष ये भी है कि हम हर घटना में एक इरादा ढूंढते हैं. सरकारें इसी बात का फ़ायदा उठाती हैं. एकाध को सजा दे दी जाती है. जैसा कि इस घटना में भी हुआ.
पूरे तंत्र में जो दरारें पड़ी हैं. वो कभी-कभी ऐसी घटनाओं के रूप में सामने आ जाती हैं. अगर खाने की टेस्टिंग, उसके भंडारण आदि की सही व्यवस्था होती तो शायद ये हादसा नहीं हुआ होता. रोज़मर्रा के जीवन में हम अपने जुगाड़ों और ‘चलता है’ वाले दर्शन से काम चलाते रहते हैं. पर कई बार ये फ़लसफ़ा बहुत महंगा पड़ता है.
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