पटना : महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा व भेदभाव को समाप्त करने के लिए वैश्विक स्तर पर लोगों को जागरूक किया जा रहा है. इसके लिए प्रत्येक वर्ष 25 नवंबर को महिला हिंसा को समाप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस का थीम महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा ‘ऑरेंज द वर्ल्ड: फंड, प्रिवेंट, कलेक्ट’ है. यह दिवस 16 दिनों तक चलेगा और 10 दिसंबर को अतंरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर यह समाप्त होगा. जेंडर आधारित हिंसा व भेदभाव के प्रति जागरूकता अभियान को लेकर “सहयोगी” द्वारा जिला के दानापुर के हतियाकांध पंचायत भवन में आयोजित एक कार्यक्रम द्वारा “महिला हिंसा के विरुद्ध चलने वाले पखवारे” का शुभारंभ किया गया. इस मौके पर लगभग 50 महिलाओं व किशोरियों ने भाग लिया. स्थानीय महिला बैंड ने अपने कार्यक्रमों द्वारा महिला एकजुटता व सशक्तिकरण का प्रदर्शन किया.पंचायत के मुखिया रवींद्र कुमार ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि जेंडर आधारित हिंसा सहित घरेलू हिंसा की रोकने की दिशा में सहयोगी संस्था द्वारा सराहनीय प्रयास किया जा रहा है. इसे रोकने में सामुदायिक सहभागिता सुनिश्चित करनी जरूरी है. तभी समाज का सही व संतुलित विकास हो सकेगा. इस मौके पर महिला बैंड की सदस्य संगीता देवी ने बताया कि उन्हें भी घर समाज का विरोध का सामना करना पड़ा था. लोगों का ऐसा मानना था कि बैंड बाजे का काम सिर्फ पुरुषों का है. लेकिन कुछ महिलाओं व महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम करने वाली संस्थाओं के सहयोग से महिला बैंड स्थापित किया गया. सहयोगी संस्था की प्रमुख रजनी ने कहा कि संस्था के द्वारा घरेलू हिंसा व जेंडर आधारित भेदभाव को समाप्त करने के लिए विभिन्न गतिविधियां की जाती हैं. उन्होंने कहा जेंडर आधारित हिंसा के विरुद्ध इस 16 दिवसीय अभियान के दौरान आम जनमानस में महिलाओं के प्रति हिंसा के मुद्दे पर जागरूक किया जायेगा. उन्होंने इस अभियान में लोगों से सक्रिय रूप से जुड़ने का आह्वान भी किया.
मी टू व टाइम्स अप हैशटैग ने खींचा लोगों का ध्यान
विश्व में महिलाओं के शोषण व उत्पीड़न व हिंसा की घटनाओं को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने गंभीरता से लिया है. हाल ही में मी टू व टाइम्स अप हैशटैग ट्रेंड किया गया जिसका उद्देश्य लोगों का ध्यान जेंडर आधारित हिंसा की रोकथाम के लिए होने वाले प्रयासों की तरफ खींचना है. दुनिया भर के देशों में प्रचलित महिलाओं के प्रति हिंसा व जेंडर आधारित भेदभाव की घटनाओं को सामान्य मान लिया जाता है. लेकिन ऐसे अपराध करने वालों को बिना समुचित दंड दिये छोड़ दिया जाना एक वैश्विक संस्कृति के रूप में देखा जा रहा है. इस दिशा में 16 दिवसीय इस अभियान को महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इसका एक मुख्य कारण कोविड 19 संकटकाल के दौरान महिलाओं के साथ हुई हिंसा भी है.
घरेलू हिंसा के मामले नहीं होते हैं दर्ज
राष्ट्रीय क्रीम रिकॉर्ड ब्यूरो के 2019 के रिपोर्ट के अनुसार बिहार में महिलाओं के विरुद्ध हुए अपराध वाले अधिनियम के अंतर्गत 15518 मामले दर्ज हुए हैं. अकेले सिर्फ दहेज़ उत्पीड़न के 3289 मामले दर्ज हुए. हलाकि सबसे चौकाने वाली बात इस रिपोर्ट में यह थी की बिहार घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाने के लिए बने अधिनियम के अंतर्गत कोई मामला दर्ज नहीं हुआ. ये सर्वविदित है कि हमारे समाज में हर रोज ये घटनाएँ होती है परन्तु दर्ज नहीं होती है.
15 साल की उम्र से ही होती हैं हिंसा की शिकार
राष्ट्रीय परिवार स्वस्थ्य सर्वेक्षण (NFHS 4) के मुताबिक भारत में 15-49 वर्ष आयु वर्ग की 30 फीसदी महिलाओं को 15 साल की आयु से ही शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा है. उसी आयु वर्ग की 6 फीसदी महिलाएं अपने जीवन-काल में कम-से-कम एक बार यौन हिंसा का सामना करती हैं. बिहार में 20-24 आयु वर्ग की ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिला जिनका विवाह 18 वर्ष से पूर्व किया गया, का प्रतिशत 44.5 है. वहीं यह प्रतिशत शहरी क्षेत्र में 29.1 है. 15-19 वर्ष आयु वर्ग में शहरों में 8.3 प्रतिशत एवं गाँवों में 12.8 प्रतिशत या तो माँ बन चुकी थीं या गर्भवती थीं.
पोषण के मामले में भी महिलाओं की स्थिति पीछे
भेदभाव के मामलों में महिलाओं के स्वास्थ्य की अनदेखी भी है.बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 31.8 प्रतिशत एवं शहरों में 22.2 प्रतिशत महिलाएँ शारीरिक रूप से दुर्बल एवं कुपोषित हैं. घरेलु मामलों में महत्वपूर्ण निर्णयों में विवाहित महिलाओं की भागीदारी शहर में 77.6 प्रतिशत जबकि गाँव में 74.8 प्रतिशत है, विवाहित महिलाओं में, अपने पति के द्वारा की गयी हिंसा की शिकार महिलाओं का शहरी क्षेत्र में प्रतिशत 40.2 और ग्रामीण क्षेत्र में 43.7 है. 15-24 आयु वर्ग की महिलाओं में, जो अपने मासिक चक्र के दौरान पर्याप्त स्वच्छता-सफाई के उपायों को अपना सकती हैं उनका प्रतिशत शहर में 55.3 प्रतिशत और गाँव में मात्र 27.3 प्रतिशत है, जो परिवार में उनके स्वास्थ्य के प्रति घोर उदासीनता को दर्शाता है. इसी प्रकार दहेज़ को लेकर हत्या, मानव व्यापार, आदि के आंकड़े भी समाज में लडकियों-महिलाओं की दयनीय स्थिति को दर्शाती है, तथा इन आंकड़े के द्वारा यह स्पष्ट है कि समाज में उन्हें दोयम दर्जे माना जाता है.
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