पटना: बिहार के गया में पुलिस के लिए मुखबिरी करने के शक में दो महिलाओं सहित एक ही परिवार के चार सदस्यों को मौत के घाट उतार दिए जाने के बाद माओवादियों का डर फैल गया है। इस वजह से दलितों के कम से कम 12 परिवार अपना गांव छोड़कर भाग गए हैं। राजधानी पटना से करीब 193 किलोमीटर दूर राज्य के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में स्थित माओवादी प्रभावित डुमरिया पुलिस थाना क्षेत्र के मोनवर गांव में शनिवार की रात जन अदालत लगाकर माओवादियों ने चार लोगों (दो दंपती) की हत्या कर दी थी। इन चारों पर माओवादियों ने पुलिस को सूचनाएं देने का आरोप लगाया था। इसके बाद गांव के कई परिवार आसपास के इलाकों में रहने वाले अपने रिश्तेदारों के घर चले गए।
मोनवर गांव पहाड़ी पर स्थित है। गांव तक पहुंचने के लिए सात किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। यह गांव बिहार के गया और औरंगाबाद और झारखंड के पलामू जिले की सीमा पर स्थित है। चार लोगों को मारे जाने की वारदात को माओवादियों ने उसी स्थान पर अंजाम दिया जहां 16 मार्च 21 को सुरक्षा बलों ने चार माओवाद कमांडरों को मार गिराया था। जिन चार लोगों को माओवादियों ने लटका कर मार डाला उनकी पहचान महेन्द्र भोक्ता उनकी पत्नी मनोजवा देवी, भाई सत्येन्द्र भोक्ता और उनकी पत्नी सुनीता देवी के तौर पर हुई। पुलिस ने बताया कि महेन्द्र के शरीर पर कई गंभीर जख्म पाए गए। जबकि दोनों महिलाओं के हाथ उनकी साड़ी से बांध दिए गए थे और आंखों पर पट्टी बांधी गई थी। माओवादियों ने भोक्ता परिवारों को गांव छोड़ देने की धमकी दी है और चेताया है कि यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया तो खतरनाक अंजाम भुगतना होगा।
माओवादियों की धमकी पर अमल करते हुए महेन्द्र की सुकवारी देवी, पिता सरयुग सिंह भोक्ता, उसके 10 साल के बेटे, 10 से 16 साल के बीच की एक भतीजी और दो भतीजे घटनास्थल से एक किलोमीटर दूर स्थित चंचल-गोरईया गांव शिफ्ट हो गए हैं। सोमवार सुबह गांव में कुछ ग्रामीण खेतीबारी और दूसरे कामों में जुटे थे। घटनास्थल पर कोई पुलिसकर्मी नहीं था। वारदात के बाद नौजवानों ने भी इस डर के चलते घर छोड़ दिया है कि पुलिस कहीं उन्हें पूछताछ के लिए उठा न ले जाए। कुछ बहादुर लोग जो अभी भी गांव में हैं उनका कहना है कि लोग इसलिए गांव छोड़कर गए हैं क्योंकि पुलिस और माओवादी दोनों से डरे हुए हैं। बीड़ी बनाना, महुआ इक्ट्ठा करना और बांस के सामान बनाना गांववालों का मुख्य पेशा है।
पिंटू देवी और बबिता देवी सहित पीड़ित परिवार के कुछ समय करीब के एक स्कूल में रह रहे हैं। उन्होंने बताया कि गांव में आए माओवादियों ने सबसे पहले बच्चों को पकड़कर दूसरे घर में बंद कर दिया। इसके बाद उन्होंने परिवार के चार सदस्यों को मार दिया और सात पेज का एक पम्फलेट वहीं छोड़ गए। इस पम्फलेट में लिखा था कि चारों को कोबरा बटालियन 205 द्वारा मारे गए चार माओवादी कमांडरों की मौत का बद लेने के तौर पर मारा गया है। माओवादियों ने आरोप लगाया कि महिलाओं ने उनके कामरेड्स को खाने में जहर दे दिया था।
एक अन्य ग्रामीण राजेन्द्र सिंह भोक्ता ने बताया कि घटना के वक्त सरयुग अपनी पत्नी के साथ दूसरे घर में सो रहे थे। माओवादियों ने उन्हें बाहर से बंद कर दिया। गया के एसएसपी आदित्य कुमार ने बताया कि मृतक के चाचा मंगरू भोक्ता के बयान के आधार पर इस मामले में 15 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। आरोपियों में विवेक यादव, इंदल के नाम शामिल हैं। 40 अज्ञात माओवादियों के खिलाफ भी केस दर्ज किया गया है। परिवार की सुरक्षा के इंतजार के बारे में पूछे जाने पर एसएसपी ने स्वीकार किया कि पीड़ित परिवार दूसरे स्थान पर शिफ्ट हो गए हैं।
प्रदेश पुलिस मुख्यालय के एक वरिष्ठ पुलिस अफसर के मुताबिक, ‘पिछले कई वर्षों में यह पहला मौका है जब प्रदेश में कंगारू कोर्ट (माओवादियों की जन अदालत) लगाई गई और दो महिलाओं सहित चार लोगों को फांसी से लटका दिया गया। 2015 के अंत में कंगारू कोर्ट या जन अदालत के नाम पर 18 लोगों को मार डाला गया था। उन पर भी पुलिस के मुखबिरी करने और माओवादी विचारधारा पर विश्वास न करने का आरोप लगाया गया था। माओवादी प्रभावित इलाकों से आ रही सूचनाओं के मुताबिक मारे गए लोगों की संख्या अधिक भी हो सकती है। प्रतिहिंसा के डर से कई मौतों को रिपोर्ट ही नहीं किया गया। माओवादी स्थानीय लोगों को सबक सिखाने के इरादे से उन्हें मार रहे हैं। वे ग्रामीणों में डर फैलाना चाहते हैं। एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि गांव में दिहाड़ी पर गुजारा करने वाले दलितों के करीब 50 परिवार रहते हैं। पूर्व में उनमें से कुछ की माओवादियों से निकटता थी जबकि उनमें से कुछ मारे गए।
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