पटना: दो दिन पहले जिस तरह से प्रधानमंत्री ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को वास्तविक समाजवादी नेता करार दिया था। उसके बाद बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार को लेकर अलग अलग तरह की प्रतिक्रिया जताई जा रहा है। जहां जदयू ने पीएम की बातों का समर्थन किया है। वहीं कुछ राजनेता ऐसे भी हैं जिन्हें नीतीश कुमार के वास्तविक समाजवादी नेता बताए जाने पर आपत्ती है। ऐसे ही एक राजनेता हैं अरुण कुमार। अरुण कुमार पूर्व सांसद हैं, जिन्होंने साफ कहा है कि नीतीश कुमार समाजवादी नहीं हो सकते हैं, क्योंकि उन्होंने अपने नेता जार्ज फर्नांडिस के पीठ पर छुरा भोंकने का काम किया था।
अरुण कुमार ने कहा कि सभी जानते हैं कि जार्ज फर्नांडिस ने पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए कितना काम किया। नीतीश कुमार उनके साथ थे। लेकिन अपनी राजनीति चमकाने के लिए उन्होंने जार्ज साहब, जो कि वास्तविक समाजवादी नेता थे. उन्हें धोखा दिया। यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है।
अरुण कुमार ने कहा कि प्रधानमंत्री अगर नीतीश कुमार को असली समाजवादी बता रहे हैं, तो वह सिर्फ वर्तमान राजनीतिक विवाद पर मरहम लगाने के लिए कर रहे हैं। वर्ना, प्रधानमंत्री का दिल भी जानता होगा कि वह कैसे समाजवादी हैं कि अतिथि को सामने बैठाकर उनके सामने से पत्तल खिंच ले। अपने पूरे संस्कार और संस्कृति का नाशक हो, वह समाजवादी का पुरोधा हो जाए, ऐसे लोगों से भगवान बचाए।
पूर्व सांसद ने कहा कि नीतीश कुमार एक ऐसे समाजवादी नेता हैं. जिनके शासन में महिलाएं पूरी तरह से असुरक्षित हैं। आए दिन बालिका गृह कांड जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं। नीतीश कुमार ने एक ऐसा कुनबा तैयार कर दिया है, जिसका काम सिर्फ बिहार को लूटना है
अरुण कुमार ने कहा बिहार में शराबबंदी है कि लेकिन इसके बाद भी यहां बीस हजार करोड़ रुपए का धंधा फल फुल रहा है। यहां किसानों को धान के समर्थन मूल्य का एक हिस्सा बिचौलिए खा रहे हैं। उनके अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। यही नीतीश कुमार का समाजवाद है। मेरा मानना है कि नीतीश कुमार को भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए
समाजवाद पर बोलते हुए अरुण कुमार ने कहा कि आज समाजवाद पर परिवारवाद और पूंजीवाद हावी हो चुका है। वर्तमान में शायद की किसी पार्टी में समाजवाद जीवित है। इसका मुख्य कारण है हमारी उच्च शिक्षा व्यवस्था का गिरता स्तर। कॉलेजों में समाजवाद की पढ़ाई नहीं होती है। जो शिक्षक हैं, वह जाली सर्टिफिकेट के सहारे वीसी बने हुए हैं. घरों से करोड़ों रुपए बरामद हो रहे हैं। ऐसे में समाजवाद की उम्मीद बेमानी है। आज वास्तविक समाज गांवों के खेल खलिहानों में काम करनेवाले कुछ किसानों तक सीमित रह गया है।
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