परवेज़ अख्तर/सिवान:- कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर सतर्कता बरतते हुए इस बार प्रशासन ने मुहर्रम जुलूस पर रोक लगा दी है। परंपरागत ताजिया जुलूस पर इस बार कोरोना की नजर भले ही लग गई, लेकिन मुहर्रम की आठवीं तारीख शुक्रवार को हर घर में या हुसैन की गूंज सुनाई पड़ी। मैरवा में मुहर्रम की सातवीं तारीख को हर साल मिट्टी की रस्म अदा करने समूहों में ताजिएदार निर्धारित स्थल पहुंते थे, लेकिन कोरोना के कारण इस बार ऐसा नहीं हुआ। हालांकि बिना जुलूस मुहल्ले के दो तीन लोगों द्वारा खामोशी से मिट्टी लेने की रस्म अदा की गई। इस रस्म की अदायगी में न बाजे बजे न शोरगुल सुनाई पड़ा। आठवीं तारीख जिसे छोटी चौक के रूप में रात्रि जुलूस निकाले जाते थे वह भी खामोशी के साथ गुजर गया। न जुलूस निकला न तो पारंपरिक लाठी भाला के कला कौशल का प्रदर्शन हुआ। घरों में नेयाज फातिहा का आयोजन कर कर्बला के शहीदों की याद ताजा की गई और या हुसैन की गूंज मुस्लिम बस्तियों में हर घर से उठी।
आस्था में नहीं धर्म की दीवार
मुहर्रम के अवसर पर मन्नतें मांगने और मुरादें पूरी होने पर उसे पूरा करने की कोशिशें होती हैं। यहां धर्म की कोई दीवार नहीं दिखती। मुहर्रम का महीना शुरू होते ही अपने मन्नत के मुताबिक कोई ताजिए का निर्माण करता है तो कोई रोजे रखता है। कोई अपने बच्चे को हजरा हुजरी (दुलदुल) का स्वरूप देता है। आस्था के आगे धर्म की दीवार नजर नहीं आती। डॉ. फुलेना की पत्नी ने बताया कि वह हर साल मुहर्रम की पांचवीं तारीख से दसवीं तक रोजा रखती हैं। ऐसी कई महिलाएं और भी हैं जिन्हें मुहर्रम के आने का इंतजार रहता है। शिवपुर मठिया में मुसलमानों के साथ हिदू समुदाय के लोग मिलकर ताजिया निर्माण करते हैं। ताजिया उठाने में भी वे आगे-आगे रहते हैं।
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