परवेज अख्तर/सिवान: महाराजगंज अनुमंडल मुख्यालय के मांझी-बरौली पथ स्थित संस्कृत विद्यालय उपेक्षा का शिकार है। इसका भवन धराशायी होने के कगार पर है। भवन जर्जर होने के कारण शिक्षक अपनी जान जोखिम में डालकर बच्चों को पढ़ाते हैं। इसके बावजूद विभाग इस पर ध्यान नहीं दे रहा है। ज्ञात हो कि स्वामी कर्म देव ने अपनी निजी भूमि में संस्कृत विद्यालय की स्थापना 1918 में की थी, ताकि क्षेत्र के बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके। इसमें कुल चार कमरे बनाए गए थे। विद्यालय में बच्चे पढ़ने भी आने लगे, लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिलने से धीरे-धीरे बच्चों का इस विद्यालय से मोह भंग होता गया। इसके बाद इस विद्यालय परिसर के एक भाग में बच्चों को उच्च शिक्षा देने के लिए महाविद्यालय की स्थापना की गई, लेकिन वह भी कारगर साबित नहीं हुआ।
जब इस विद्यालय की स्थापना हुई उस समय दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के शिक्षकों को आंशिक रुपये मासिक के रूप में मिल रहा था। इसके बाद संस्कृत शिक्षा बोर्ड में आ गया। इस विद्यालय में कक्षा छह से 10 कुल 150 बच्चे अभी भी पढ़ते हैं। इस विद्यालय में शिक्षकों का नौ सीट आवंटित है, लेकिन मात्र चार शिक्षक ही कार्यरत हैं। विद्यालय के प्रधानाध्यापक नरेंद्र उपाध्याय ने बताया कि भवन पुनर्निर्माण के लिए शिक्षा विभाग को कई बार पत्र दिया गया, लेकिन आजतक भवन पुनर्निर्माण की राशि नहीं आ सकी। इस कारण भवन की मरम्मत नहीं हो सकी और भवन पूरी तरह जर्जर हो गया।
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