परवेज अख्तर/सिवान: स्थानीय प्राधिकार विधान परिषद चुनाव में विजयी घोषित हुए बिनोद जायसवाल के लिए दूसरी वरीयता के वोट जीवनदायिनी साबित हुए हैं. जी हां, एकल संक्रमणीय पद्धति से होने वाली मतगणना में प्रथम वरीयता के 1714 वोट पाने वाले जायसवाल दूसरी वरीयता की गिनती के बाद 2032 मत हासिल कर चुके थे और सबसे ज्यादा वोट पाने वाले प्रत्याशी बन गए. क्योंकि मतदाताओं ने पहले प्रत्याशी को प्रथम वरीयता के वोट देने के बाद दूसरी वरीयता का वोट जायसवाल को दिया था. पहले वाले प्रत्याशी तीसरे चक्र की मतगणना के दौरान बाहर होते गए और उनका मत जायसवाल में जुटता चला गया.
ऐसे समझें गणित
पहले चक्र की मतगणना में प्रथम वरीयता के वोट क्रमश: कांग्रेस के अशोक कुमार सिंह को 217, राजद के बिनोद जायसवाल को 1120, भाजपा के मनोज सिंह को 1120, रइस खान को 1305, संजय कुमार साह को 07, अजय भास्कर चौहान को 35, मेनका रमण को 12, महबूब आलम को 12 मत प्राप्त हुए. दूसरे चक्र में जब द्वितीय वरीयता वोटों की गिनती शुरू हुई तो जायसवाल के खाते में अशोक सिंह के आधे से ज्यादा वोट, संजय कुमार साह के 07, मेनका रमण के आधे से ज्यादा और महबूब आलम के 12 में 9 वोट जायसवाल में जुट गए. क्योंकि इन प्रत्याशियों को मतदाताओं ने प्रथम वरीयता वोट तो दिया था, लेकिन दूसरी वरीयता वोट जायसवाल को दे दिया था. इसलिए तीसरे चक्र की गणना में संजय कुमार साह, अजय भास्कर चौहान, मेनका रमण और महबूब आलम बाहर हो गए. इनके दूसरे वरीयता वोट संबंधित उम्मीदवार के खाते में जुट गया. अंतिम चक्र की मतगणना में तीन ही प्रत्याशी बचे थे. बिनोद जायसवाल, रइस खान और मनोज सिंह. दूसरे प्रत्याशियों के प्रथम वरीयता के बाद दूसरी वरीयता वोटों का गणित साफ होने के बाद अंतिम तौर पर कुल मिले मतों का जोड़ हुआ जो तीनों प्रत्याशियों में जुड़कर इस प्रकार कुल वोट बना.
बिनोद जायसवाल को प्रथम वरीयता के 1714 द्वितीय वरीयता के 315 कुल 2032 वोट मिले. ये वोट दूसरे प्रत्याशियों के वोट कटकर इसमें जुड़े हैं. इसी प्रकार रइस खान को प्रथम वरीयता 1305 वोट मिले और 61 वोट दूसरी वरीयता के जुड़े जो 1366 हो गए. मनोज सिंह को प्रथम वरीयता के 1120 और दूसरी वरीयता के 29 वोट मिले यानी कुल मत 1149 मिले और तीसरे स्थान पर रहे.
कैसे कटता-जुड़ता है वोट
मान लीजिए एक बैलेट पर किसी प्रत्याशी को अगर केवल प्रथम वरीयता का वोट मिलता है और उसमें किसी दूसरे को कोई वरीयता वोट नहीं मिलता है तो उसका अपना वोट होता है. और वह किसी दूसरे प्रत्याशी में नहीं जुटेगा. लेकिन अगर किसी बैलेट पर प्रथम के साथ दूसरी वरीयता का भी वोट पड़ा है और दूसरी वरीयता प्राप्त प्रत्याशी लड़ाई में है तो उसके वोट में दूसरी वरीयता के वोट जुड़ते जाएंगे. जैसे किसी को 7 वोट मिले, 6 पर दूसरी वरीयता के वोट हैं तो छह वोट विलुप्त हो जाएंगे और दूसरी वरीयता वाले में जुट जाएंगे.
वर्जन
एकल संक्रमणीय पद्धति से होने वाली मतगणना में केवल और केवल प्रथम वरीयता प्राप्त बैलेट ही उस प्रत्याशी का अपना होता है. दूसरी वरीयता वोट होने की स्थिति में वह वोट दूसरे को ट्रांसफर हो जाते हैं. संभव है कि उसे जीताने का कारण बन सकते हैं.
अनिल राय, उपनिर्वाचन पदाधिकारी, सीवान.
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