परवेज अख्तर/सिवान: नवरात्र के तीसरे दिन भक्तों ने बुधवार को मां चंद्रघंटा की उपासना की. माता से शांति और कल्याण की कामना की गई. देवी मंदिरों में सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ी. बारिश थमने के बाद सुरज की दर्शन होने से अन्य दिनों के अपेक्षा श्रद्धालुओं की भीड़ मंदिरों में पूजा अर्चना करने के लिए अधिक देखी गयी. जयकारे करते काफी संख्या में नंगे पैर ही भक्त मंदिरों की ओर भागते नजर आए. घरों में भी पूजा अर्चना का सिलसिला जारी है. शहर के कचहरी रोड़ स्थित दुर्गा मंदिर, गांधी मैदान स्थित बुढ़िया माई मंदिर, स्टेशन रोड़ स्थित संतोषी मां मंदिर, रजिस्ट्री कचहरी रोड़ स्थित काली मंदिर ,फतेहपुर स्थित दुर्गा मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ पूजा अर्चना करने के लिए सुबह से रही. मां चंद्रघंटा कल्याण और शक्ति की देवी मानी जाती हैं. साधकों ने देर रात तक मां के विग्रह को साधना कर मनाया. कचहरी रोड़ स्थित दुर्गा मंदिर में जय मातादी के घोष के बीच भक्तों ने पंक्ति में लगकर माता के दर्शन किए. गांधी मैदान स्थित बुढ़िया माइ मंदिर में भी भक्तों की भीड़ बढ़ती जा रही है. महिलाओं की टोलियां देवी गीत गातें हुए पहुंचीं. देर शाम तक मां के जयकारे गूंजते रहे. शारदीय नवरात्र के पावन अवसर पर शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की उपासना में भक्त लीन हैं. हर तरफ वैदिक मंत्रोच्चारण, धूप एवं अगरबत्ती की खुशबू से वातावरण भक्तिमय बनता जा रहा है.
नवरात्र में चतुर्थ दिन माँ कूष्मांडा की पूजा
नवरात्र में चतुर्थ दिन माँ कूष्मांडा की पूजा होती है. जिससे आयु, यश, बल व धन प्राप्त होता है. नवरात्रि में हर दिन मां के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है .जो खुशी, शांति, शक्ति और ज्ञान प्रदान करते हैं. वैसे तो मां दुर्गा का हर रूप बहुत सरस होता है लेकिन मां का कूष्माण्डा रूप बहुत मोहक और मधुर है. नवरात्र के चौथे दिन मां के इस रूप की पूजा होती है. कहते हैं नवरात्र के चौथे दिन साधक का मन ‘अदाहत’ चक्र में अवस्थित होता है. अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा करनी चाहिए. मां के इस रूप के बारे में पुराणों में जिक्र है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी. इसलिए इन्हें सृष्टि की आदि स्वरूपा व आदिशक्ति भी कहते हैं. माँ कूष्मांडा का वाहन शेर है. देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा भी कहलाई जाती हैं. इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है.
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