परवेज अख्तर/सिवान: इस्लामी कैलेंडर का आखिरी महीना और मुस्लिम भाईयों का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार बकरीद 10 जुलाई से शुरू होगा. जिले भर के मुस्लिम भाई अभी से ही तैयारी में लग गए हैं. त्योहार को लेकर बाजारों में भी चहल – पहल तेज हो गई है .हर जगह मस्जिद , ईदगाह , मजार , घर व अन्य जगहों की साफ – सफाई का काम शुरू हो गया है . जिले बघर से आजमीन – ए – हज का काफिला मक्का व मदीना को रवाना होने लगा है .बकरी बाज़ारो पर भी लोगों की भीड़ उमड़ने लगी है. सभी जगह पर सुबह से लेकर देर शाम तक लोगों की भीड़ लगने लगी है. इसके अलावा देश और विदेशों में रहने वाले लोग भी घर वापस आने लगे हैं. अभी से ही हर जगह पर खुशियों का माहौल बनना शुरू हो गया है .वर्षों से बिछड़े दोस्त एक – दूसरे से मिलने लगे हैं.
बकरीद की नींव ही है कुर्बानी
मर्दापुर पश्चिम टोला मस्जिद के इमाम जियाउर रहमान नाइमि ने बताया कि इस्लाम के दूसरे सबसे बड़े त्योहारों में बकरीद ( ईद उल अजहा ) का त्योहार शामिल है .ईद उल अजहा को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है .बकर ईद अरबी शब्द ” बकर ” से लिया गया है . बकर का मतलब होता है बड़ा या विशाल .इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार ईद उल अजहा को बेहद पाक पर्व माना जाता है.सभी मुसलमान इस त्योहार का बेसब्री से इंतजार करते हैं. बकरीद पर्व की नींव ही कुर्बानी शब्द पर रखी गई थी . इसका नैतिक अर्थ यह होता है कि इंसान अपने अंदर की पशु वृत्ति यानी अपने अंदर की बुराइयों की कुर्बानी दे.
तीन हिस्से में बांटा जाता है कुर्बानी का तबर्रुक
मौलाना जियाउर रहमान नाइमि ने बताया कि अल्लाह के आखिरी रसूल हजरत मोहम्मद साहब ने न केवल कुर्बानी का तरीका बताया है , बल्कि उसके वितरण का भी हिसाब बताया दिया है . धार्मिक ग्रंथों के हिसाब से बकरे की कुर्बानी देने के बाद उसके तबर्रुक को तीन भागो में बांट दिया जाता है . इसका एक भाग गरीबों के लिए , दूसरा भाग संबंधियों को दिया जाता है और तीसरा हिस्सा घर के लोगों के लिए रखा जाता है .
बकरीद की 10 वीं तारीख से मनता है त्योहार
कुर्बानी का यह पर्व दसवीं जिल्हिज्जा से शुरू होता है और तीन दिनों तक कुर्बानी की रस्म चलती है. यह त्योहार हजरत इब्राहीम अलै . व उनके बेटे हजरत इस्माइल अलै . की याद में मनाया जाता है .बकरीद के दिन इस्लाम से जुड़ा हर शख्स खुदा के सामने अपने सबसे करीबी चीज को कुर्बान करता है .यह कुर्बानी अल्लाह तआला को बेहद पसंद है. मौलाना ने बताया कि कैलेंडर के हिसाब से यह त्योहार 10 जुलाई को मनाया जाना है , लेकिन अगर चांद आगे – पीछे हुआ तो फिर त्योहार की तिथि भी बदल सकती है.
इस कारण मनाया जाता है बकरीद
उन्होंने बताया कि धार्मिक किताबों के अनुसार पैगम्बर हजरत इब्राहीम अलै . को ईश्वर की ओर से हुक्म आया था कि वे अपनी सबसे प्यारी चीज को अल्लाह तआला की राह में क़ुरबान कर दें . हजरत इब्राहीम अलै . के लिए सबसे प्यारे उनके बेटे हजरत इस्माइल अलै . थे .ईश्वर का हुक्म उनके लिए पत्थर का लकीर था.कुर्बानी से पहले उन्होंने इस विषय पर बेटे ( हजरत इस्माइल अलै . ) से बात की . बेटे ने पिता के फैसले को सही बताया और हंसते – हंसते क़ुरबानी को तैयार हो गए.
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