परवेज अख्तर/सिवान:- जिले के जीरादेई प्रखंड के तितिर स्तूप व हेयवती नदी के समीप ढाई हजार वर्ष पहले भगवान बुद्ध के निर्वाण को देखते हुए एक ओर जहां इस स्थल को बौद्ध भिक्षुओं से जुड़े आस्था का केन्द्र बनाने का प्रयास जोरों पर है, वहीं, जिले का विदेशी पर्यटकों के हब के रूप में विकसित करने की भी। कहा जाता है कि मझौली व मैरवा के मल्ल परिवार के पूर्वजों ने भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया था। तितिर स्तूप व इस स्थल पर विदेशी बौद्ध भिक्षुओं का लगातार आना लोगों के बीच चर्चा का विषय बनता जा रहा है। कहा जा रहा है कि प्रशासन भी इस दिशा में पहल करने का उत्सुक दिख रहा है। इसी क्रम में पिछले दिनों सीवान पहुंची वियतनाम की बौद्ध भिक्षुणी बोधिचिता माता ने तितिर स्तूप के समीप भगवान बुद्ध की निर्वाण मुद्रा में प्रतिमा लगाने के लिए पहल की है। बोधिचिता माता ने इस स्थल से धम्म यात्रा निकालने का प्रस्ताव दिया है। बांग्लादेश के भन्ते सुमनानंद ने उम्मीद जताई कि इस स्थल पर बड़ी संख्या में अन्य जगहों से भी बौद्ध भिक्षु पहुंचेंगे।
गया के भन्ते डॉ. अशोक शाक्य का कहना है कि तितिर स्तूप स्थल साधना की दृष्टि से काफी उत्तम है। हालांकि इस स्थल को और अधिक विकसित करने की जरूरत है। उनका कहना है कि काफी कम समय में साधक को यहां पर साधना करने का फल मिलेगा, कारण कि यहां पर वाईबे्रशन अधिक है। इस स्थान की प्रासंगिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2015 से 2018 के दौरान दुनिया के आठ अलग-अलग देश में शामिल वियतनाम, वर्मा, थाईलैंड व बांग्लादेश के बौद्ध भिक्षु सीवान की यात्रा कर भगवान बुद्ध से जुड़े अवशेष व पुरातात्विक अवशेष का अवलोकन कर चुके हैं। हालांकि तब उन्होंने मिट रहे पुरातात्विक साक्ष्य व पानी में डूबे भग्नावेश को लेकर अपनी चिंता भी जाहिर की है। बहरहाल, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम के निरीक्षण के दौरान प्राचीन भग्नावेश व दौ सौ फीट लंबी दीवार की नींव मिली थी।
भगवान बुद्ध के निर्वाण स्थल पर पहुंचे बौद्ध भिक्षुओं का कहना है कि उनका आगे भी इस स्थल पर आना जारी रहेगा। वियतनाम की माता बोधिचिता, थाईलैंड से भन्ते सुमेधी, वर्मा से मिमी, वियतनाम से होआ, श्रीलंका से तुन व बांग्लादेश से भन्ते सुमनानंदा तितिर स्तूप के दर्शन करने आ चुके हैं। शोधार्थी कृष्ण कुमार सिंह का कहना है कि भारतीय पुरातत्व विभाग के उत्खन्न में जो कुछ मिला उसने तितिर स्तूप की प्राचीनता के वैज्ञानिक तथ्य को प्रस्तुत किया है। छोटे शिलालेख पर लिखी गई लिपि को पढ़ने से इस स्थान की वास्तविकता दुनिया के समक्ष आएगी। हालांकि पुरातत्व विभाग अब-तक इस लिपि को पढ़ नहीं पाया है।
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