@संजीवनी रिपोर्टर
गोपालगंज: प्रसव के दौरान थोड़ी सी असावधानी और जानकारी का अभाव दो जिंदगी को नुकसान पहुंचा सकती है। प्रसव के वक्त इसी असावधानी और जानकारी को प्रबल करने के उदृयेश्य से दिया जाने वाला अमानत ज्योति प्रशिक्षण अब स्वास्थ्यकर्मियों के लिए मील का पत्थर साबित हो रहा है। अमानत ज्योति कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षित जीएएनएम निशि कुमारी डीएमटी बनकर प्रसव कक्ष में कार्यरत अन्य नर्सों के कार्यों में निखार ला रही हैं । जीएनएम निशि कुमारी सदर अस्पताल के प्रसव कक्ष में काम करती हैं| ऐसे में प्रसव कराने के दौरान जटिलताएं भी आती हैं, पर अमानत के कारण इसे समझने और सुलझाने में काफी सहायता मिली है। प्रशिक्षण के बाद इसका हल वह खुद कर लेती हैं। प्रसव कराने वाली महिलाओं का विश्वास अमानत प्रशिक्षण के बाद काफी बढ़ा है। वहीं पीपीएच, एक्लेंप्सिया, प्री एक्लेंसिया की पहचान कर उसका निदान कराना अमानत के कारण ही संभंव हो सका है। प्रशिक्षण से जहाँ अस्पतालों में उपलब्ध प्रसव की सुविधाएं सुदृढ़ हुई हैं । वहीं, प्रसूती महिलाएं संस्थागत प्रसव को प्राथमिकता देने लगी हैं । जिससे पूर्व के सापेक्ष वर्तमान में सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में प्रसव की संख्या में वृद्धि हुई है एवं अस्पतालों में प्रसूति महिलाओं की भीड़ बढ़ने लगी है। जिससे अस्पतालों की तस्वीर भी बदलने लगी है।
जिलास्तर पर उत्कृष्ट अंक हासिल की
जीएनएम निशि कुमारी को अमानत ज्योति कार्यक्रम के जिलास्तर रैंकिंग में सबसे उत्कृष्ट मार्क्स दिया गया है। निशि ने बताया अमानत ज्योति कार्यक्रम के तहत उन्हें 6 माह तक प्रशिक्षण दिया गया और समय-समय पर इसका मूल्यांकन भी किया गया। जिसमें उन्हें सबसे अधिक अंक प्राप्त हुआ। यह अंक हासिल कर निशि कुमारी अब अमानत ज्योति कार्यक्रम की डीएमटी बन गयी हैं ।
कार्यकुशलता में निखार ने बदली प्रसव कक्ष की तस्वीर
डीएमटी निशि कुमारी ने बताया प्रसव कक्ष में कार्यरत जीएनएम की कार्य क्षमता को सुदृढ कर प्रसव कक्ष की गुणवत्ता में सुधार ला चुकी हैं । पहले जिस जीएनएम को एक्लेमशिया, बर्थ-एक्सपेक्शिया, एचआरपी की पहचान में समस्या होती थी वह अब आसानी से पहचान कर लेती है। इससे रेफर होने के मामलों में कमी आयी है। इसके साथ पीएनसी के द्वारा महिलाओं की काउंसिलिंग भी की जाती है। अमानत से उनकी कार्यशैली में वृहत बदलाव आए हैं। हाथ धोने के सही तरीके से लेकर प्रसव पूर्व और प्रसव बाद की दिक्क्तों को समझना अमानत प्रशिक्षण के कारण ही संभव हो सका है। जिससे प्रसव कक्ष में भी उनकी कार्यक्षमता में सजगता और बदलाव आया है।
ऑक्सीटॉक्सिन के दुरुपयोग में आयी कमी
जीएनएम निशि कुमारी कहती है कि पहले प्रसव के दौरान ऑक्सीटॉक्सिन का दुरुपयोग बहुत ज्यादा होता था। जानकारी व जागरूकता की कमी के कारण ऐसा होता था। लेकिन इस प्रशिक्षण के बाद इसमें काफी बदलाव हुआ है। अब इसके दुरुपयोग पर रोक लग गयी है। जरूरत पड़ने पर ही इसका इस्तेमाल किया जाता है। जो जच्चा-बच्चा दोनों के लिए सही है।
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