पटना: कोसी के डॉन पप्पू देव पुलिस हिरासत में मौत की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आ गई है। इसमें मौत की वजह ब्रेन में हेमाटोमा के कारण कार्डियो रेसपिटरी सिस्टम का फेल होना बताया गया है। साथ ही रिपोर्ट में पप्पू के पूरे शरीर पर जख्म के 30 गंभीर निशान भी बताए गए हैं। ये निशान हार्ड एंड ब्लंट वस्तु के प्रहार के हैं। रिपोर्ट आने के बाद एक बार फिर पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं। बिहार के एक रिटायर्ड DIG ने सहरसा SP लिपि सिंह को कटघरे में खड़ा किया है। उन्होंने कहा है कि SP लिपि सिंह को दायित्व का ज्ञान नहीं है। अगर पुलिस ही सजा देने लगे तो फिर कोर्ट का क्या काम ?
बिहार के पूर्व IPS अधिकारी सुधीर कुमार ने पप्पू देव की पुलिस हिरासत में हत्या की बात कही है। उन्होंने कहा कि अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट सामने है। इस आधार पर कहा जा सकता है पप्पू देव की हत्या की गई है। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों द्वारा समर्पित शवच्छेदन प्रतिवेदन से तो स्पष्ट है कि पप्पू देव को बुरी तरह किसी भोथरे हथियार से पीट-पीट कर मारा गया। निस्संदेह यह पुलिस अभिरक्षा में की गई नृशंस हत्या का मामला है।
रिटायर्ड DIG ने कहा कि कुछ लोगों के अनुसार पप्पू देव एक अपराधी था और उसकी हत्या को ज्यादा महत्त्व नहीं दिया जाना चाहिए । क्या यह सही नजरिया है ? फिर न्यायालय की क्या जरुरत है ? तब तो सरकार को कानून बनाकर पुलिस को अधिकार दे देना चाहिए कि वह अपनी अभिरक्षा में स्वविवेक से किसी अपराधी की हत्या करने को स्वतंत्र है। मुझे लगता है कि पुलिस अधीक्षक लिपि सिंह को अपने दायित्व का उचित ज्ञान नहीं है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से प्रथम दृष्टया तो यही लगता है कि सहरसा पुलिस हत्या का दोषी है।
उन्होंने कहा कि खैर, यह बात उजागर होनी चाहिए कि आखिर हत्या क्यों की गई ? क्या सच में पुलिस के साथ मुठभेड़ हुई थी ? यदि गोलीबारी हुई थी,जैसा बताया जा रहा है ,तो क्या हथियार जब्त किये गए थे और उसपर अभियुक्त के फिंगरप्रिंट मौजूद हैं ? यदि नहीं, तो फिर मुठभेड़ की कहानी को सच कैसे माना जा सकता है ? आखिर पुलिस किस वारंट के निष्पादन के लिए वहाँ गयी थी ? पुलिस का शाब्दिक अर्थ ही अभिरक्षक है। वह दूसरों की या अपनी रक्षा के लिए तात्कालिक परिस्थिति से बाध्य होकर किसी की हत्या कर सकती है और यह अधिकार आम जनता को भी है । लेकिन ,सहरसा पुलिस को स्पष्ट करना ही होगा कि किस परिस्थिति में वह पप्पू देव की हत्या करने को बाध्य हुई थी। यदि पर्याप्त कारण स्पष्ट करने में वह असफल रहती है, तो उसे हत्या के अभियुक्त के रूप में न्यायालय में प्रस्तुत होना ही होगा।
आईपीएस सुधीर कुमार ने कहा कि हत्या के लिए थानेदार दोषी है या डीएसपी या एसपी या तीनों या फिर अन्य -यह भी वरीय पदाधिकारियों को स्पष्ट करना होगा । जनता को विश्वास करना चाहिये कि ऐसा ही होगा । हो सकता है कि रजनीश कुमार का जिला पार्षद बन जाना ही पप्पू देव के लिये काल बन गया हो । स्वतंत्र भारत में पुलिस अभिरक्षा में इस तरह की हत्या का यह विरला उदाहरण होगा । हत्याएँ होती हैं, पर उसे पुलिस मुठभेड़ का रूप देकर छिपाने का प्रयास किया जाता है । यहाँ तो ऐसा भी कुछ नहीं है । मेरे पास निंदा और भर्त्स्ना के लिये उचित शब्द नहीं हैं । खैर, मुझे विश्वास है कि प्रशासन उचित जाँच और कार्रवाई जरूर करेगा ,अन्यथा जनता के मन -मस्तिष्क में कानून का कोई अर्थ ही नहीं रह जायेगा ।
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