परवेज़ अख्तर/सिवान:- शहर का हृदय स्थली माना जाने वाला गांधी मैदान गुरुवार की रात एक बार फिर से सिवान वासियों के यादगार बन गया। दैनिक जागरण के तत्वावधान में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में कवियों को सुनने के लिए लोग व्याकुल थे। जैसे ही घड़ी में शाम साढ़े छह बजे लोग अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए मंच की ओर खीचे चले आए। जैसे ही अंधेरा हुआ और आयोजन स्थल पर लाइट और बॉक्स से मधुर आवाज लोगों के कानों तक पहुंची श्रोता अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे। श्रोताओं की भीड़ का नजारा भी ऐसा था कि मैदान में लगे ढाई हजार कुर्सी पल भर में कब श्रोताओं से भर गए इसका अंदाजा ही नहीं लगा। दैनिक जागरण के इस आयोजन की सफलता का परिणाम तो उसी समय आ गया जब श्रोताओं के लिए दोबारा पांच सौ कुर्सियों का इंतजाम कराया गया बावजूद इसके कुर्सियों के पीछे लोग खड़े होकर और जिन्हें जगह नहीं मिली वे बाइक पर बैठकर इस अखिल भारतीय कवि सम्मेलन के रस में कई बार गोता लगाते रहे। खड़े श्रोताओं को इस बात का इल्म तक नहीं हुआ कि इन्होंने देश के पद्मश्री से सम्मानित देश के नामचीन कवियों की रचनाओं को घंटे खड़े होकर सुन लिया।
श्रोताओं की वाहवाही और तालियों की गड़गड़ाहट ने जितना ही उत्साह कवियों का बढ़ाया उतना ही उत्साहित होकर कवियों ने भी गुरुवार की शाम को और यादगार पल में बदला। दर्शक दीर्घा में बैठे ढाई हजार श्रोताओं और मंच पर आसिन कवियों के बीच ऐसा सिलसिला चला कि पांच घंटे तक निकल गए किसी को पता ही नहीं चला। कवि सम्मेलन की शुरुआत सबसे पहले उपस्थिति मुख्य अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित और दैनिक जागरण के संस्थापक के तैलचित्र पर पुष्प अर्पित कर किया। इसके बाद मंच का बागडोर संभाला चूड़ियों फिरोजाबाद से आए युवा शायर हासिम फिरोजाबादी ने। उन्होंने सबसे पहले कौमी एकता की मिसाल पेश करते हुए कहाकि अब ना हो मुल्क में कोई दंगा, अब और मैली ना हो ये गंगा, आइये मिलकर खाए कसम झुकने ना देंगे देश का झंड़ा। इस शायरी को सुनते ही पूरा गांधी मैदान जोश और उल्लास से भर गया और तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। इसके बाद उन्होंने देश के युवाओं पर शायरी पेश करते हुए कहाकि सुन लो ए आशिकों, मौत से मत डरो, रुख महबूब का अब मोड़ लो, लड़कियों पर नहीं अब वतन पर मरो,। इसके बाद उन्होंने फिर से देश की आन बान और शान के लिए शायरी के कुछ अल्फाजों को पढ़ने से पहले हमारे प्रायोजक इस्मत ईएनटी हॉस्पिटल के डॉ. एमडी शादाब का नाम लेते हुए कहा यहां हर बेटी सीता है, यहां हर बेटी राधा है, यहां हर बेटी मरियम है, यहां हर बेटी सलमा है। यहां जो लूटे इनकी लाज फिर वो चाहे मौलाना हो या महाराज, हिंदुस्तान छोड़ दे। यहां जन्नत का नजारा है, बहती प्यार की धारा है, जो नफरत का खोले बाजार, वो हिंदुस्तान छोड़ दे। श्रोताओं के अनुरोध पर उन्होंने एक और शायरी पेश करते हुए कहाकि खुद अपने आप को आबाद कर रहा हूं मैं, ये देख तुझको याद कर रहा हूं मैं,सुना वो मुझे बर्बाद कर रहा है, ये देख अपने आप को आबाद कर रहा हूं मैं। इस शायरी के बाद हासिम फिरोजाबादी ने मंच से इजाजत ली। इसके बाद मंच पर आईं अन्ना देहलवी ने सरस्वती वंदना को पढ़ते हुए दिल में है जो मेरे अरमान भी दे सकती हूं सिर्फ अरमान भी,कैसे करूं तेरी वंदना, अक्षर-अक्षर है बेजान वो मां शारदे… से हुई।
उन्होंने अपनी कविता से देश की सलामती और कौमी एकता का संदेश दिया। अन्ना देहलवी ने अपनी कविता पढ़ते हुए कहाकि रात दिन ख्वाब देखता है तू, तेरी नींद उड़ा कर छोड़ूंगी। तू समंदर समझता है खुद को तेरा पानी उड़ा कर छोड़ूंगी। जिंदगी जिस पे मेरी भारी थी, हर अदा जिसकी मुझे प्यारी थी, वो नजर से उतर गया है, मैंने जिसकी नजर उतारी थी। इस पंक्तियों को सुनकर श्रोताओं ने खूब वाही के साथ तालियां बजाईं। उन्होंने कहा किरण देना, सुमन देना, धन देना, वतन वालों, मुझे तो सिर्फ वचन देना अगर मर जाऊं तो तिरंगे का कफन देना। देश भक्ति को समर्पित इन पंक्तियों के बाद अन्ना देहलवी ने मंच से अनुमति ली।[sg_popup id=”5″ event=”onload”][/sg_popup]
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