डेस्क : यदि मैं अपने मानस पटल पर दबाव डालते हुए अपने बचपन की यादों को ताजा करता हूँ तो मेरे ईंट के दीवार और खपरैल छत के सेलिंग के बाँँसोंं पर छोटे छोटे तिनको के घोसले बनाये छोटी चिड़ियों के समूह की याद आती है जो आज शायद ही कहींं नजर आतींं। इन चिड़ियों की खूबी यह थी कि ये घर के सदस्यों के आस पास चींं चींं करती रहतींं थींं । घर के आंगन में इनका झुंड इक्कठा हो कर खेल मस्ती से खेलता और चींं चींं की आवाज खास कर सुबह सूर्योदय एवं संध्या सूर्यास्त के समय मानो ये पक्षी गाने गा रहे होंं। इनकी आवाज सुनकर मेरा बाल मन इनको पकड़ने के लिए दौड़ता और इनका डर से उड़ जाना तथा इनको तंग करने के लिए माँ से डॉट मिलना और मार खाना ,बस अब यादे ही शेष।
बचपन मे हम इन्हें फरगुद्दी चीं-चीं, चिरैया ऐसे अनेक नामों पुकारते थे। लेकिन अब कम ही दिखाई देती हैं। पक्के मकान, बदलती जीवनशैली और मोबाइल रेडिएशन से यह धीरे-धीरे गौरैया विलुप्त जा रही है।
गौरैया के प्रति लोगों को जागरूकत पैदा करने के लिए पूरे विश्व में हर वर्ष 20 मार्च को गौरैया दिवस मनाया है। इस दिवस को पहली बार 2010 ई में मनाया गया था। लगातार घट रही गौरैया की संख्या को अगर गंभीरता से नहीं लिया गया तो वह दिन दूर नहीं, जब गौरैया हमेशा के लिए दूर चली जाएगी।
गौरैया अधिकांशतः छोटे-छोटे झाड़ीनुमा पेड़ों में रहती है लेकिन अब वो बचे ही नहीं है। अगर आपके घर में छोटे छोटे फूल का पौधे या शहतूत जैसे झाड़ीनुमा पेड़ है तो उन्हें कृपा कर न काटे और गर्मियों में पानी को रखें।विश्व भर में गौरैया की 26 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 5 भारत में देखने को मिलती हैं। नेचर फॉरेवर सोसायटी के अध्यक्ष मोहम्मद दिलावर के विशेष प्रयासों से पहली बार वर्ष 2010 में विश्व गौरैया दिवस मनाया गया था।
शनिवार को विश्व गौरैया दिवस है और यह हर साल 20 मार्च को मनाया जाता है। यह दिवस दुनिया में गौरैया पक्षी के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मना रहा है । एक समय में यह घर के आंगन में चहका करती थी, लेकिन अब इसकी आवाज कानों तक नहीं पड़ती है।
दिल्ली में तो गौरैया इस कदर दुर्लभ हो गई है कि ढूंढे से भी ये पक्षी नहीं मिलता, इसलिए साल 2012 में दिल्ली सरकार ने इसे राज्य-पक्षी घोषित कर दिया। बता दें कि ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस’ ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को ‘रेड लिस्ट’ में डाला है। खास बात यह है यह कमी शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में है। पश्चिमी देशों में हुए अध्ययनों के अनुसार गौरैया की आबादी घटकर खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।
बताते चले कि गौरेया ‘पासेराडेई’ परिवार की सदस्य है, लेकिन कुछ लोग इसे ‘वीवर फिंच’ परिवार की सदस्य मानते हैं। इनकी लम्बाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है तथा इनका वजन 25 से 32 ग्राम तक होता है.।एक समय में इसके कम से कम तीन अंडे देती है ,जो बच्चे होते हैं। गौरेया अधिकतर झुंड में ही रहती है। भोजन तलाशने के लिए गौरेया का एक झुंड अधिकतर दो मील की दूरी तय करता है।
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