पटना: जहानाबाद विधानसभा सीट से मैदान में उतरे बिहार के शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा चुनाव हार गए हैं। उन्हें राजद के सुदय यादव ने 33 हजार वोटों से ज्यादा के अंतर से हराया है। कृष्णनंदन पिछली बार घोसी सीट से जीते थे। सीट बदलना भी उनको रास नहीं आया है। कृष्णनंदन पहले दौर से ही पीछे चल रहे थे। दोपहर एक बजे ही कृष्णनंदन बड़े अंतर से पिछड़ चुके थे।
समाचार लिखे जाने तक राजद के सुदय यादव को 73627 और कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा को 40217 वोट घोषित किये गए थे। लोजपा की इंदु देवी कश्यप 23744 वोट पाकर तीसरे नंबर पर थीं। शाम सात बजे तक अंतिम गणना सार्वजनिक नहीं की गई थी। जहानाबाद में पहले चरण में 28 अक्तूबर को वोट पड़े थे। कुल 52.98% मतदान हुआ था। कृष्णनंदन के मैदान में उतरने के कारण ही जहानाबाद सीट वीआईपी हो गई थी।
2015 के चुनाव में कृष्णनंदन प्रसाद ने घोसी से जीत हासिल की थी। पिछले चुनाव में कृष्णनंदन वर्मा ने हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा के राहुल शर्मा को हराया था। 2015 में हुए चुनाव में महागठबंधन प्रत्याशी कृष्णनंदन वर्मा ने लगभग 38 सालों बाद घोसी से जगदीश शर्मा और उनके परिवार के किसी सदस्य को मात देकर जीत हासिल की थी।
महागठबंधन में बनी सरकार में उन्हें मंत्री बना दिया गया था। कुछ ही दिनों बाद महागठबंधन से जदयू के निकल जाने के बाद वर्मा घोसी से निकलना चाहते थे। जातीय समीकरण के कारण यहां से अपना रास्ता बदलने का भी संकेत उन्होंने दिया था। इसी के बाद उन्हें जहानाबाद सीट से मैदान में उतारा गया। लेकिन यहां से उतरना भी उनके लिए फायदेमंद नहीं रहा।
राजद ने अपने विधायक कृष्णमोहन उर्फ सुदय यादव को फिर से उम्मीदवार बनाया था। पूर्व मंत्री मुंद्रिका सिंह यादव के बेटे सुदय ने पिता के निधन के बाद 2018 में यह सीट जीती थी। भाजपा के खाते में सीट नहीं आने पर इंदु कश्यप भी लोजपा के टिकट पर मैदान में उतरी थीं। जाप के सुलतान अहमद, बसपा के मनोज कुमार चंद्रवंशी समेत यहां कुल 15 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे।
2015 के चुनाव में जदयू के साथ रहे राजद के पाले में यह सीट गई थी। मुद्रिका सिंह जीते थे। हालांकि बीमारी से उनकी मौत के बाद राजद ने उनके बेटे सुदय यादव को 2018 के उपचुनाव में उम्मीदवार बनाया। वे जीत गए। हालांकि इस सीट पर सन 2000 से ही राजद का प्रभुत्व है। बीच में 2010 में जदयू के अभिराम शर्मा निर्वाचित हुए थे।
राजद के वरिष्ठ नेता मुद्रिका सिंह यादव ने 2015 में जीत हासिल की थी। 2017 में डेंगू के कारण उनकी मौत के बाद राजद ने उनके बेटे सुदय यादव को चुनावी मैदान में उतार दिया। इसका उन्हें फायदा भी मिला। एक बार फिर सुदय पर ही राजद ने दांव लगाया था। इस सीट पर शुरू से मुकाबला दिलचस्प होने की उम्मीद जताई जा रही थी। एनडीए यहां सेंध लगाने की कोशिश में थी।
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