परवेज अख्तर/सिवान :- जिले के हसनपुरा प्रखण्ड के विभिन्न पंचायतो के छात्र छात्राओं ने इस बार मैट्रिक के रिजल्ट आने पर काफी खुशी देखने को मिल रही है। खासकर गोल्डन कोचिंग के नाजरीन बानो 406, अविनेश शर्मा 451, सोनाली कुमारी 442, दयानिधि 413, प्रिंस कुमार गिरी 413 तथा उज्वल कुमार गुप्ता 444 तथा दरकशां नूर 322 प्राप्तांक पाकर मैट्रिक रिजल्ट में प्रथम स्थान प्राप्त किये हैं।
आधी आबादी की बात अधूरी, इसलिए माहवारी की बात जरुरी
- सर्वव्यापी माहमारी से माहवारी नहीं रूकती
- माहवारी ब्रेसलेट होगा माहवारी स्वच्छता का प्रतीक
- माहवारी स्वच्छता को पर्दे में रखने के प्रचलन को तोड़ने की जरूरत
- बिहार में अभी भी 69% महिलाएं असुरक्षित पैड का कर रही इस्तेमाल
न्यूज़ डेस्क:- बेटियों, किशोरियों, महिलाओं या फिर सामाजिक और राजनैतिक शब्दों में आधी आबादी की जब भी हम बात करते हैं तो अमूमन हम शसक्तीकरण, विकास, अधिकार, हिंसा जैसे शब्दों पर ज्यादा बल देते हैं। माहवारी स्वच्छता की बात आज भी सामाजिक या पारिवारिक चिंतन का हिस्सा नहीं बन पाया है। हालाँकि सामाजिक संस्थाओं और संगठनों द्वारा पिछले कुछ दशकों में माहवारी स्वच्छता को आम जन के बीच चिंतन का हिस्सा बनाने की पुरजोर कोशिश की गई है। इन कोशिशों के फलस्वरूप ही आज सरकार भी माहवारी स्वच्छता पर थोड़ी तरजीह देना शुरू कर पाया है. लेकिन अभी भी यह प्रयास उस स्तर तक नहीं पहुंच पायी है, जहाँ से यह कहा जा सके कि सरकार ने अपनी अन्य प्राथमिकताओं की सूचि में इसे शरीक कर लिया है.
परिवार की प्राथमिकताओं से भी माहवारी स्वच्छता नदारद
माहवारी स्वच्छता आज भी राज्य, समाज और परिवार के प्राथमिकता सूचि में आखरी पायदान पर है। इस सबसे हालिया उदहारण है आज समाज में माहवारी स्वच्छता की स्थिति। जब कोरोना महामारी फैला तो हमारे देश की सरकारों ने बहुत घोषणाएं की मसलन राशन, कमजोर परिवारों के आर्थिक सहायता, महामारी से मरने वालों के लिए आर्थिक सहायता, बुजुर्गों को पेंशन राशि का अग्रिम भुगतान इत्यादि. लेकिन कहीं भी सेनेटरी पैड उपलब्ध कराने की बात नहीं कही गई। तर्क यह है कि यह आनिवार्य सेवा में नहीं आता और खासकर महामारी और विपदा में इसपर ध्यान नहीं दिया जा सकता। लेकिन प्राकृतिक आपदा हमेशा आती है और फिर वहां यही तर्क होता है और इसका भुगतान महिलाओं को ही करना पड़ता है। वास्तव में मामला प्राथमिकता का है। हाँ, कुछ संस्थाओं ने इस दिशा में बेहतर प्रयास किये हैं।
माहवारी स्वच्छता पर्दे में है कैद
जब सरकार अपने कार्यक्रम तय करती है तो यह भूल जाती है कि ये महिलाओं की वो जरुरत है जो नियमित तौर पर प्रति माह होती है। इस भूल का कारण यह नहीं है कि यह जरुरी नहीं या इसे किसी भी आपदा के समय सुनिश्चित नहीं किया जा सकता. इसका सबसे बड़ा कारण इसपर चुप्पी है। आज भी समाज में यह टैबू (निषेध) ही है। आज भी मेडिकल दुकान वाले इसे रद्दी पेपर, खाकी कागज या काले पॉलिथीन में ही देते हैं। आज भी जब हम घर के पूरे महीने भर का सामान लाते हैं तो उसमे नमक, हल्दी से लेकर टूथ पेस्ट और शैम्पू होता है. परन्तु सैनिटरी पैड नहीं होता. जबकि तक़रीबन हर घर में हर महीने इसकी आवश्यकता होती है। माहवारी स्वच्छता की बात तब तक बेईमानी ही रहेगी, जबतक यह राशन की सूचि में न आ जाय। यही हाल सरकार का भी है. किसी भी आपदा के दौरान हर चीज का ख्याल रखा जाता है, यहाँ तक कि जानवर के चारे का भी लेकिन सेनेटरी पैड सबको मिले यह सुनिश्चित नहीं किया जाता है. इतना ही नहीं हमारे समाज में आज भी कई भ्रांतियां व्याप्त हैं जिन्हें दूर करने के लिए परिवार, समाज और सरकार तीनों के पुरजोर कोशिश की जरुरत होगी। सामाजिक संस्थाएं इसमें अहम् भूमिका अदा कर रही हैं। इस कोशिश को और पुख्ता करने की साझा कवायद होनी चाहिए। यह एक ऐसा मसला है, जिसमे परिवार की भूमिका सबसे ज्यादा अहम् है। जहाँ निर्णय सबसे निचले स्तर पर होना है इसका मतलब है कि सामाजिक व्यव्हार परिवर्तन आवश्यक होगा और इसमें मीडिया सबसे अहम् भूमिका अदा कर सकती है।
सर्वव्यापी महामारी से माहवारी नहीं रूकती
28 मई को दुनियाभर में माहवारी स्वच्छता दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 2013 में “वाश यूनाइटेड” नाम की सामजिक संस्था ने किया था। वर्ष 2014 में यह पूरी दुनिया में मनाया गया। माहवारी स्वच्छता दिवस का उद्देश्य है: इसपर व्याप्त चुप्पी को तोड़ना, जागरूकता बढ़ाना, सम्बंधित सामाजिक रूढ़िवादिता/भ्रान्ति को समाप्त करना, नीति निर्माताओं को शामिल कर राजनैतिक प्रतिबद्धता को बढ़ाना। “सर्वव्यापी महामारी से माहवारी नहीं रूकती और न ही हम” इस वर्ष का नारा है। मासिक का आना किसी महामारी के लिए इंतजार नहीं कर सकता है. इसलिए जरुरी है कि कोविड-19 के रेस्पोंस में इसको भी शामिल किया जाय। ये मांग इस वर्ष माहवारी स्वच्छता दिवस के दौरान उठी है।
माहवारी ब्रेसलेट माहवारी स्वच्छता का प्रतिक
सामाजिक बदलाव में प्रतीकों (सिंबल) की भूमिका बहुत ही अहम् रही है. उदहारण स्वरुप आज हम सब लाल रिबन क्रॉस स्टाइल को एचआईवी/एड्स के रूप में पहचानते है। उन अनुभव के आधार पर इस बार माहवारी ब्रेसलेट को माहवारी एवं माहवारी स्वच्छता दिवस का प्रतीक बनाया गया है जिसमे 28 मोतियाँ हैं जिसमे 5 मोतियाँ लाल है. यह इस बात का प्रतिक है कि 28 दिन में 5 दिन माहवारी (रक्तस्राव) होता है। लोगों से अपील की गई है कि आप इसे पहनकर पुरे अभियान को समर्थन दें। 28 और 5 को दर्शाते हुए, ये ब्रेसलेट किसी भी चीज से रचनात्मक रूप में बनाई जा सकती है।
बिहार में अभी भी 69% महिलाएं असुरक्षित पैड के इस्तेमाल करने पर बाध्य
शसक्तीकरण की दलीलें उपहास करती प्रतीत होती है जब यह ज्ञात होता है कि अभी भी बिहार में 69% महिलाएं ऐसी हैं जो माहवारी के दौरान सुरक्षित सेनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 द्वारा जारी ये आंकड़ें राज्य सरकार की माहवारी स्वच्छता को लेकर किये जा रहे प्रयासों की वास्तविक तस्वीर बयां करती दिखती है. ऐसा नहीं है कि केवल बिहार ही माहवारी स्वच्छता सुनिश्चित करने में नाकाम रहा है, बल्कि देश भी इस दिशा में कोई उल्लेखनीय सफलता अर्जित करती नहीं दिखती है. भारत में भी 54% महिलाएं माहवारी के दौरान सुरक्षित पैड का इस्तेमाल करने से वंचित हो जाती हैं.
सदर अस्पताल में स्वास्थ्य कर्मियों को दिया गया प्रशिक्षण
होम क्वॉरेंटाइन में रहने वाले प्रवासियों का घर घर जाकर किया जाएगा स्वास्थ्य जांच
- गृह भ्रमण कर की जाएगी प्रवासियों की निगरानी
छपरा: दूसरे राज्यों से आने वाले प्रवासियों को क्वॉरेंटाइन में रखने के लिए श्रेणी का बंटवारा किया गया है। अब सूरत, अहमदाबाद, नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद, दिल्ली, मुंबई , फरीदाबाद, कोलकाता, बेंगलुरु से आने वाले प्रवासियों को ही स्कूल क्वॉरेंटाइन में रखा जाएगा तथा अन्य राज्यों से आने वाले प्रवासियों को 14 दिन होम को क्वॉरेंटाइन रखा जाएगा। प्रवासियों को होम क्वारंटाइन में रख कर उन्हें 14 दिनों तक प्रतिदिन स्वास्थ्य परीक्षण किया जाएगा। इसको लेकर जिला प्रतिरक्षण कार्यालय में सभी स्वास्थ्य सभी प्रखंडों के स्वास्थ्य प्रबंधक तथा यूनिसेफ के बीएमसी को प्रशिक्षण दिया गया। जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ अजय कुमार शर्मा, डीपीएम अरविंद कुमार, डब्ल्यूएचओ के एसएमओ रंजीतेश कुमार, यूनिसेफ के जिला समन्वयक आरती त्रिपाठी के द्वारा प्रशिक्षण दिया गया। इस दौरान उन सभी को बाहर से आये प्रवासियों के जांच, उनसे संबंधित रिपोर्ट्स, खुद की सुरक्षा संबंधी उपाय आदि की जानकारी दी गई।
होम क्वारंटाइन में रहने वाले प्रवासियों की प्रतिदिन होगी स्वास्थ्य परीक्षण
डीआईओ डॉ अजय कुमार शर्मा ने बताया कि कोविड-19 के संक्रमण के कारण होम क्वारंटीन में भेजे गए सभी प्रवासियों के प्रतिदिन होम क्वारंटीन की आवश्यकता है। हम क्वारंटीन के दौरान अगर व्यक्ति में कोविड-19 संक्रमण से संबंधित कोई लक्षण परिलक्षित होता है, तो पूर्व निर्धारित प्रक्रिया के तहत उसका सैंपल एकत्रित कर जांच एवं आवश्यकतानुसार चिकित्सकीय सेवा प्रदान किया जाएगा। इसके लिए पर्यवेक्षक द्वारा 14 दिनों तक प्रवासियों का गृह भ्रमण कर उनके स्वास्थ्य की स्क्रीनिंग की जाएगी। इसके साथ साथ उन्हें होम क्वारंटाइन के दौरान रखने वाली सावधानियों की भी जानकारी दी जाएगी।
पल्स-पोलियो अभियान के तर्ज पर की जाएगी जांच
सिविल सर्जन डॉ माधवेश्वर झा ने बताया कि प्रवासियों के घर-घर सर्वे अभियान पल्स पोलियो अभियान के तर्ज पर चलाया जाएगा। 14 दिन परीक्षण के दौरान पर्यवेक्षकों द्वारा प्रवासियों के घरों में जाकर व्यक्तियों की स्क्रीनिंग की जाएगी। साथ ही प्रवासी व्यक्तियों के घरों पर पर्यवेक्षकों द्वारा होम क्वारंटाइन संबंधी पोस्टर चिपकाया जाएगा और उन्हें होम क्वारंटाइन संबंधी पम्पलेट भी उपलब्ध कराई जाएगी. पर्यवेक्षक द्वारा 14 दिन तक चिपकाए गए पोस्टर पर तिथि सहित हस्ताक्षर किए जाएंगे।
प्रशिक्षण में दी गई जानकारी
प्रवासियों के होम क्वारंटाइन के समय 14 दिनों तक घर घर जाकर जांच सम्बन्धी जानकारी पर्यवेक्षक द्वारा जांच क्रम में सर्दी, खांसी व सांस लेने में हो रही कठिनाई आदि की जांच कर इसकी सूची संबंधित स्वास्थ्य कार्यालय में प्रदान की जाएगी। प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी द्वारा ऐसे चिन्हित व्यक्ति को प्रखंड स्तर पर चल रहे क्वारंटाइन सेंटर्स पर ला कर कोविड -19 संबंधित जांच हेतु आवश्यक कार्यवाही करेंगे।
प्रखंड स्तर पर दिया जाएगा प्रशिक्षण
जिलास्तर से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद सभी बीएचएम और बीएमसी प्रखंड स्तर पर सुपरवाइजर को प्रशिक्षण देंगे और होम क्वॉरेंटाइन में रहने वाले प्रवासियों का दो टू डोर स्वास्थ्य परीक्षण तथा स्क्रीनिंग कराना सुनिश्चित करेंगे।
सतवार गांव में रास्ते के विवाद में दबंगों ने एक ही परिवार के 6 लोगों को जमकर पीटा
इलाज सदर अस्पताल में जारी
परवेज अख्तर/सिवान:- जिले के जी. बी. नगर तरवारा थाना क्षेत्र के सतवार दक्षिण टोला गांव में दबंगों ने एक ही परिवार के 6 लोगों को जमकर पिटाई कर दी। जिससे 6 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। आनन-फानन में परिजनों ने सभी घायलों को इलाज हेतु सिवान सदर अस्पताल में भर्ती कराया जहां घायलों का इलाज जारी है।
सदर अस्पताल के चिकित्सकों द्वारा यह बताया गया कि मारपीट में घायल गायत्री देवी तथा गुलाबो देवी की हालत गंभीर बनी हुई है। घायलों में क्रमशः गायत्री देवी, गुलाबो देवी, शिवकुमारी देवी, ज्योति कुमारी ,रुबी कुमारी ,तथा शंकर राम शामिल हैं। घटना के संबंध में जी. बी. नगर थानाध्यक्ष सह इंस्पेक्टर प्रमोद कुमार सिंह ने बताया कि घायल गायत्री देवी के लिखित आवेदन पर एक नामजद प्राथमिकी दर्ज कराई गई है।
जिसमें गांव के ही जगतराम, संजीत राम, मुन्ना राम, तथा गोलू राम को आरोपित किया गया है। दर्ज प्राथमिकी के बाद पुलिस अनुसंधान जारी है। घायल गायत्री देवी ने बताया कि मेरे घर के बगल के जमीन में रास्ते के विवाद को लेकर उक्त घटना का अंजाम गांव के दबंगों द्वारा दी गई है। दबंगों द्वारा जबरन रास्ता मांगा जा रहा था रास्ता देने से इनकार करने पर सभी आरोपितों ने एक षड्यंत्र व साजिश के तहत पारंपरिक हथियारों से लैस होकर अचानक हमला बोल दिए।
बहरहाल चाहे जो हो घटना को लेकर गांव के दो गुटों में तनाव व्याप्त है खबर लिखे जाने तक पुलिस द्वारा अभी तक किसी भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी। परिजनों ने बताया कि घटना का अंजाम देने वाले लोग गांव में घूम घूम कर तरह-तरह की धमकी दे रहे हैं।जिससे हम लोगों में और दहशत का माहौल कायम है।
माहवारी स्वच्छता दिवस –28 मई
`माहवारी माहामारी के लिए नहीं रूकती’
लॉकडाउन से सेनेटरी पैड्स न मिलने के कारण, महिलाएं कर रही कपडे का इस्तेमाल
- एमएचएआई द्वारा कराए गए सर्वेक्षण से हुआ ख़ुलासा
- महामारी के बाद 67% संस्थानों को रोकनी पड़ी सामान्य कार्रवाई
सिवान: लॉकडाउन के कारण कई जगह सेनेटरी पैड की अनुपलब्धता ने महिलाओं एवं लड़कियों को डिस्पोजेबल पैड की जगह कपडे के पैड इस्तेमाल करने पर बाध्य किया है.
कोरोना काल में कपडे का सेनेटरी पैड बेहतर विकल्प
रेगुलर सेनेटरी पैड के विकल्प के रूप में कपड़े से बने पैड को भी सामान रूप से प्रचारित किया जा सकता है.जैसे कपड़ों से बने पैड को 4-6 घंटे तक इस्तेमाल की जाए, पैड बदलने से पूर्व एवं बाद में हाथों की सफाई की जाए, साफ़ सूती कपडे से बने ही पैड इस्तेमाल में ली जाए, औरपैड को अच्छी तरह धोने के बाद धूप एन सुखाया जाए ताकि किसी भी तरह के संक्रमण प्रसार का खतरा कम हो सके.
लंबे समय से लॉकडाउन ने सेनेटरी पैड की उपलब्धता को किया प्रभावित
जिलों में सरकार द्वारा स्कूलों में सेनेटरी पैड का वितरण किया जाता है. लेकिन लॉकडाउन के कारण स्कूलों के बंद होने से कई लड़कियों एवं उनके परिवार के अन्य सदस्यों को सेनेटरी पैड उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं. लॉकडाउन के कारण सेनेटरी पैड का निर्माण भीबाधित हुआ है जिससे ग्रामीण स्तर के रिटेल पॉइंट्स पर पैड की उपलब्धता भी बेहद प्रभावित हुयी है. गाँव के जो लोग प्रखंड या जिला स्तर से सेनेटरी पैड की खरीदारी कर सकते थे, वह भी लॉकडाउन के कारण यातायात साधन उपलब्ध नहीं होने से प्रखंड या जिला स्तर पर आसानी से पहुँच नहीं पा रहे हैं.
सेनेटरी पैड की आसान उपलब्धता में होलसेलर्स को भी दिक्कत का सामना करन पड़ रहा है. निरंतर दो महीने तक देशव्यापी लॉकडाउन के कारण सेनेटरी पैड की होलसेल वितरण काफी प्रभावित हुयी है. यद्यपि धीरे-धीरे इसे पुनः नियमित करने का प्रयास किया जा रहा है. लेकिन अधिक यातायात कॉस्ट( रोड एवं हवाई भाड़ा) अभी भी चुनौती रहने वाली है. अभी सेनेटरी पैड के सिमित उत्पादन की संभावना बनी रहेगी, क्योंकि फैक्ट्री के अंदर मजदूरों को सामाजिक दूरी का ख्याल रखना होगा. साथ ही जिन फैक्ट्रियों में प्रवासी मजदूरों की संख्या अधिक थी, वहाँ मजदूरों की कमी की समस्या बढ़ सकती है.
एमएचआई ने किया खुलासा
यह खुलासा वाटर ऐड इंडिया एंड डेवलपमेंट सौलूशन द्वारा समर्थित मेंसट्रूअल हेल्थ अलायन्स इंडिया(एमएचएआई) द्वारा माहवारी स्वच्छता जागरूकता एवं उत्पाद से जुड़े संस्थानों से इस वर्ष के अप्रैल माह में सर्वेक्षण किया गया. एमएचआई भारत में मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों, शोधकर्ताओं, निर्माताओं और चिकित्सकों का एक नेटवर्क है. सर्वेक्षण में महामारी के दौरान सेनेटरी पैड का निर्माण, पैड का समुदाय में वितरण, सप्लाई चेन में चुनौतियाँ, सेनेटरी पैड की समुदाय में पहुँच एवं जागरूकता संदेश जैसे विषयों पर राय ली गयी.
माहवारी स्वच्छता जागरूकता एवं उत्पाद को लेकर एमएचएआई द्वारा कराये गए सर्वे में देश एवं विदेश के 67 संस्थानों ने हिस्सा लिया।
माहमारी के बाद 67% संस्थानों को रोकनी पड़ी सामान्य कार्रवाई
कोविड-19 के पहले माहवारी स्वच्छता जागरूकता एवं उत्पाद से जुड़े 89% संस्थान सामुदायिक आधारित नेटवर्क एवं संस्थान के माध्यम से समुदाय तक पहुँच रहे थे, 61% संस्थान स्कूलों के माध्यम से सेनेटरी पैड वितरित कर रहे थे, 28% संस्थान घर-घर जाकर पैड का वितरण कर रहे थे, 26% संस्थान ऑनलाइन एवं 22% संस्थान दवा दुकानों एवं अन्य रिटेल शॉप के माध्यम से सेनेटरी पैड वितरण कार्य में लगे थे. लेकिन महामारी के बाद 67% संस्थानों ने अपनी सामान्य कार्रवाई को रोक दी है. कई छोटे एवं मध्य स्तरीय निर्माता सेनेटरी पैड निर्माण करने में असमर्थ हुए हैं जिसमें 25% संस्थान ही निर्माण कार्य पूरी तरह जारी किए हुए हैं तथा 50% संस्थान आंशिक रूप से ही निर्माण कार्य कर पा रहे हैं.
पैड निर्माण के रॉ मटेरियल आयात में भी चुनौतियाँ
दूसरे देशों से आयात रोके जाने से कई सामग्रियों के लिए इससे चुनौती बढ़ी है. विशेषकर माहवारी कप्स के आयात में काफी मुश्किलें आयी है. भारत और अफ्रीका के कई मार्केटर्स यूरोप में बने कप्स को ही खरीदते हैं ताकि आइएसओ की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके. अब इनके आयात में समस्या आ रही है. डिस्पोजेबल सेनेटरी पैड के लिए जरूरी रॉ मटेरियल वुड पल्प होता है, जिसकी उपलब्धता भी लॉकडाउन के कारण बेहद प्रभावित हुयी हैं.
लॉकडाउन के कारण ऑनलाइन बिक्री और कूरियर सेवाएं चालू नहीं थीं. इससे नियमित मांग और राहत प्रयासों दोनों को विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के बीच उत्पाद मांग की सेवा के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ा.
महिलाओं एवं लड़कियों की फीडबैक भी जरुरी
इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन (ICRW) एशिया की टेक्निकल एक्सपर्ट सपना केडिया कहती हैं, माहवारी स्वच्छता कार्यक्रमों के बेहतर क्रियान्वयन के लिए इस संबंध में महिलाओं एवं लडकियों से भी फीडबैक लेनी चाहिए. इस फीडबैक में मासिक धर्म स्वास्थ्य उत्पादों एवं सेवाओं की उपलब्धता, पहुंच, लागत, स्वीकार्यता (गुणवत्ता औरअन्य स्थानीय कारक) को शामिल करना चाहिए.
सेहत और सुरक्षा के लिए सेनेटरी पैड्स के लिए तय हैं मानक
- सोखने के साथ स्वच्छता और साइज भी है तय
- 28 मई को मासिक धर्म स्वच्छता दिवस
सिवान:- मासिकधर्म में जिन सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल स्वच्छता और सुरक्षा के लिए किया जाता है वह पूरी तरह से सुरक्षित हो और उससे महिलाओं की सेहत पर बुरा असर भी न पड़े, इसके लिए सरकार ने मानक तय कर रखे हैं। इंडियन ब्यूरो ऑफ़ स्टैंडर्ड्स ने सैनेटरी पैड के लिए यह मानक मूल रूप से 1969 में प्रकाशित किया था जिससे फिर 1980 में संशोधित किया गया| समय-समय पर इसमें बदलाव भी किए जाते रहे हैं।
मानदंडों का करना होता है अनुपालन
सैनिटरी नैपकिन या सैनिटरी पैड मासिक धर्म के दौरान रक्त को सोखने के लिए उपयोग किया जाता है। मासिक स्राव के मद्देनजर तय किए गए मानक के मुताबिक पैड्स एक उचित मोटाई, लंबाई और अवशोषण क्षमता वाले होने चाहिए। यानि सैनिटरी पैड का काम सिर्फ़ ब्लीडिंग को सोखना नहीं स्वच्छता (हाइजिन) के पैरामीटर पर भी खरा उतरना है। अमूमन जब सैनिटरी पैड खरीदते हैं तो ब्रांड वैल्यू पर विश्वास करते हुए पै़ड्स ख़रीद लेते हैं जबकि सैनिटरी पैड की अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए, भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा सख्त विनिर्देश तैयार किए गए हैं। आईएस 5405 में मानदंडों और नियमों का विस्तृत विवरण है, जिसका सैनिटरी पैड निर्माताओ कों पालन करना होता है।
सैनिटरी पैड गुणवत्ता के लिए मानक
- सैनिटरी पैड बनाने के लिए अब्सॉर्बेंट फ़िल्टर और कवरिंग का सबसे अधिक ख़्याल रखना होता है। कवरिंग
के लिए भी अच्छी क्वालिटी के कॉटन का इस्तेमाल होना चाहिए। - फिल्टर मैटेरियल सेल्युलोज़ पल्प, सेल्युलोज़ अस्तर, टिशूज़ या कॉटन का होना चाहिए। इसमें गांठ, तेल
के धब्बों, धूल और किसी भी चीज़ की मिलावट नहीं होनी चाहिए। यह आईएस 758 के अनुरूप होना चाहिए। - नैपकिन में कम से कम 60 मिलीलीटर और नैपकिन के वजन से 10 गुना तरल पदार्थ सोखनेकी क्षमता होना जरूरी है।
- नैपकीन का कवर (बाहरी परत) कपास, सिंथेटिक, जाली और बिना बुने हुए कपडे का और स्वच्छ होना चाहिएI
- निर्माता के नाम या ट्रेडमार्क के साथ सैनिटरी नैपकिन की संख्या हर पैकेट पर चिह्नित होनी चाहिए।
- सैनिटरी नैपकिन विभिन्न आकृतियों और डिजाइन के हो सकते हैं । नियमित पैड्स 210 एमएम, लार्ज 211 से 240 एमएम, एक्ट्रा लार्ज 241 से 280 एमएम और एक्सएक्सएल यानि 281 से अधिक होना चाहिए।
- सैनिटरी पैड की सतह चिकनी, नरम और आरामदायक होनी चाहिए जिससे त्वचा को इंफेक्शन और जलन न हो। पैड पर चिपकाने वाले पदार्थो को सही जगह चिपकना चाहिएं।
- पैड्स डिस्पोजेबल होना चाहिए यानि उन्हें 15 लीटर पानी के कंटेनर में डाल दें तो पैड्स को
- विघटित होना चाहिए।
- आईएसओ 17088: उत्पाद है या नहीं, बायोडिग्रेडेबल, कम्पोस्टेबल या ऑक्सी-डिग्रेडेबल है, इसकी जानकारी सैनिटरी नैपकिन के हर पैकेट पर अंकित किया जाए।
- पैड्स की पैकिंग गत्ते का डिब्बा बोर्ड, पॉलीथीन, पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलिएस्टर या अन्य जो र्याप्त सुरक्षा प्रदान करती हो उसी में होनी चाहिए।
- इस तरह पहचानें नैपकीन- बाजार से नैपकिन खरीदते समय नैपकिन की सोखने की क्षमता 60 मिलीलीटर से कम लिखी है और प्लास्टिक रहित नहीं लिखा है तो नैपकिन न खरीदे ।
- नैपकिन पर 60 मिलीलीटर पानी दो बार में 5-5 मिनट के अंतराल में धीरे धीरे डालें तथा 10 मिनट के बाद नैपकिन का सूखापन हाथ से देखें । नैपकिन से पानी वापस नहीं निकलता है तो सोखने की क्षमता मानको के अनुसार है ।
- नैपकिन को छूकर उसकी सतह की पहचान करें कि उसकी सतह कितनी मुलायम है। कहीं पॉलिथीन का अगर प्रयोग हुआ है तो नैपकिन से हवा पास नहीं होगी । अतः ऐसा नैपकीन न खरीदें नहीं तो लाल दाने और खुजली जैसी समस्या सूखेपन के बाबजूद हो सकती है।
सिवान के हसनपुरा में मनरेगा कार्य प्रारंभ होने से मिल रहा मजदूरों का काम
परवेज अख्तर/सिवान :- जिले के हसनपुरा प्रखण्ड में मनरेगा कार्य शुरू होने से मजदूरों को काफी राहत मिलने लगी है। मजदूरों की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी है। विगत दो माह से अधिक समय से लॉकडाउन के कारण सभी काम धंधे बंद होने से मजदूरों को काफी परेशानी होने लगी थी। प्रशासन अधिक से अधिक मजदूरों को मनरेगा योजना के कार्यो में जोड़कर उनके आर्थिक स्थिति को सुधारने का प्रयास में जुटे हुए है। इस योजना तहत प्रखण्ड के उसरी बुजुर्ग पंचायत के मुखिया पायल देवी ने लालनचक से धनौती जलालपुर तक पॉइन का जिर्णोद्धार किया जा रहा।
जिसमें 18 मजदूर कार्य कर रहे है। पकड़ी पंचायत के मुखिया अनूप मिश्र ने मेरही में खाढ़ का जिर्णोद्धार कार्य किया जा रहा है।जिसमें 70 मजदूर कार्य कर रहे है। मंद्रापाली पंचायत में मुखिया अनिल राम द्वारा नया प्राथमिक विद्यालय रसूलपुर टाड़ी से पूरब धानाडीह सीमा तक सड़क मरम्मत कार्य कराया जा रहा है। जिसमें 177 मजदूर काम कर रहे है। पियाउर पंचायत के मुखिया अनिल सिंह ने झौंवा से बसंतनगर तक पॉइन की जिर्णोद्धार कार्य कराया जा रहा है।जिसमें 60 मजदूर कार्य कर रहे है। पोखरों की जीर्णोद्वार पॉइन सफाई सहित अन्य कार्य को किया जाने लगा है। इससे मजदूरों को काफी राहत भी मिल रही है।
सिवान के हसनपुरा में सादगी से मनाया ईद-उल-फितर, घरों में पढ़ी नमाज
परवेज अख्तर/सिवान :- जिले के हसनपुरा प्रखण्ड क्षेत्र में लॉक डाउन का पालन करते हुए हर्षोल्लास के साथ ईद-उल-फितर का त्योहार मुस्लिम बंधुओं ने सोमवार को सादगी पूर्व वातावरण में सामाजिक दूरी का पालन करते हुए घरों में ही रहकर मनाया। इस दौरान क्षेत्र के सभी पंचायतों यथा अरंडा, हसनपुरा, रजनपुरा, पकड़ी, शेखपुरा, सहुली, गायघाट, तेलकथू, उसरी बुजुर्ग, पकड़ी, लहेजी, फलपुरा, हरपुर कोटवा व मन्द्रपाली में सैकड़ों लोगों ने नमाज भी घरों में ही रहकर अदा की। बता दे कि यह पर्व 30 रोजा रखने के उपरांत मनाया जाता है। इस पर्व की विशेषता है कि चांद देख कर रोजा रखखा जाता है और तीस दिनों के बाद चाँद देखने के बाद रोजा खतम होता है इसी महीने में फितरा निकाला जाता है। उस पैसे को गरीबों के बीच बांटा जाता है। ताकि सभी गरीब अमीर एक सामान होकर इस पर्व को मानते है।
सिवान के लकड़ी नबीगंज में पॉजिटिव मिलने से प्रखण्ड क्षेत्र में मचा हड़कंप
परवेज अख्तर/सिवान :- जिले के लकड़ी नबीगंज प्रखण्ड क्षेत्र के भादा पंचायत अंतर्गत बरवा डुमरी में एक महिला कोरोना पॉजिटिव पाए जाने से पूरे क्षेत्र में हड़कंप मच गया है।अभी तक लकड़ी नबीगंज प्रखण्ड कोरोना संक्रमण से वंचित था।लेकिन इसकी भी शुरुआत हो चुकी है।पॉजिटिव महिला अपने पति,देवर एवं एक बच्ची के साथ सूरत से 14 मई को आयी थी।गावँ वालो ने चारों प्रवासियों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लकड़ी नबीगंज में भेज दिया,जहां चारो की जांच कर पति एवं देवर को उज्जैना क्वारेंटाइन सेन्टर में भेज दिया गया ।
वहीं महिला को बच्ची के साथ कस्तूरबा गांधी विद्यालय नबीगंज में रखा गया। 21 मई को महिला एवं बच्ची समेत अन्य को सदर अस्पताल सिवान जांच के लिए भेजा गया। 22 मई को टू नेट मशीन के जांच के द्वारा जांचोउपरांत महिला का जांच पॉजिटिव बताया गया।वहीं साथ मे रहने वाली बच्ची का रिपोर्ट निगेटिव आया।बीडीओ अल्लाउद्दीन अंसारी ने बताया कि महिला को पटना भेजा गया वहां भी जांच रिपोर्ट पॉजिटिव ही पाया गया। जिसका इलाज जारी है।
सुरक्षा कवच के बिना क्वारंटाइन सेंटर पर काम करने को मजबूर हैं शिक्षक
परवेज अख्तर/सीवान:- प्रगतिशील प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष मंगल कुमार साह ने कहा कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के संक्रमण से बचाव के लिए क्वारेंटाइन सेंटर्स बनाया गया है। क्वारेंटाइन सेंटर्स पर बिना सुरक्षा किट और स्वास्थ्य बीमा मुहैया करवाए ही दिन रात शिक्षको को ड्यूटी पर तैनात किया गया है जो शिक्षको के प्राण के साथ खिलवाड़ करने जैसा है।साथ ही उन्होंने कहा कि शिक्षक जीवन को दांव पर लगा कर करोना संकट काल में अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं ! प्रशासन द्वारा सुरक्षा किट तो दूर बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं करवाईं जा रहीं हैं! लगभग पंद्रह दिन से मास्क, हैंड ग्लास एंव सेनेटाइजर के बिना ही शिक्षक अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं! शिक्षको का तो कोई बीमा भी नही किया गया है जबकि करोना ड्यूटी में लगे अन्य कर्मियों को 50 लाख का बीमा किया गया है! शिक्षक नेता वसी अहमद गौसी ने कहा कि जिले के तमाम शिक्षक लगातार ड्यूटी करते आ रहें हैं भुखे प्यासे कार्य करने पर विवस हो गए हैं जबकि सरकार ने करोना से जुड़े ड्यूटी करने वाले प्रत्येक कर्मियों को 100 रुपये नाश्ता एवं 250 रुपये भोजन यानी कुल 350 रुपये प्रति दिन के हिसाब से जल्द भुगतान करने का आदेश दिया गया है! इस प्रकार शिक्षको में आक्रोश व्याप्त है! शिक्षक निष्ठापूर्वक अपनी सेवा दे रहे हैं लेकिन सरकार ने सुरक्षा लिए जो करोना के लेकर मानक निर्धारित किया गया है उस प्रकार से की व्यवस्था कहीं भी नहीं कि जा रहीं हैं! सरकार से मांग करते हैं कि ड्यूटी पर तैनात सभी शिक्षको को मास्क सेनेटाइजर, ग्लास एवं अल्पाहार की राशि नगद के रूप में उपलब्ध कराया जाए।