परवेज़ अख्तर/सिवान :- मुस्लिम कैलेंडर के मुताबिक शाबान माह की 15 तारीख को शब-ए-बरात मनाया जाएगा। इसको लेकर शहर से गांव तक के कब्रिस्तानों, मजारों में साफ सफाई करते हुए मुस्लिम भाइयों को देखा गया। वहीं मस्जिदों में भी इसकी तैयारी के साथ-साथ पूरी रात कुरान तथा नमाज पढ़ने की भी तैयारी कर ली गई है। दूसरी तरफ इस दिन अपनों को याद कर बख्शीश की दुआ करेंगे। बता दें कि शब-ए-बरात दो शब्दों, शब और बरात से मिलकर बना है। शब का अर्थ है रात। वहीं बारात का अर्थ बरी होना होता है। मुसलमानों के लिए यह रात बहुत फजीलत (महिमा) की रात होती है। इस दिन विश्व के सारे मुसलमान अल्लाह की अबादत करते हैं। वे दुआएं मांगते हैं और अपने गुनाहों की तौबा करते हैं। इबादत, तिलावत और सखावत (दान-पुण्य) के इस मौके के लिए मस्जिदों और कब्रिस्तानों में खास सजावट की गई है। रात में मनाए जाने वाले शब-ए-बरात के त्योहार पर कब्रिस्तानों में भीड़ का आलम रहेगा। पिछले साल किए गए कर्मों का लेखा-जोखा तैयार करने और आने वाले साल की तकदीर तय करने वाली इस रात को शब-ए-बरात कहा जाता है। इस रात को पूरी तरह इबादत में गुजारने की परंपरा है। नमाज, तिलावत-ए-कुरआन, कब्रिस्तान की जियारत और हैसियत के मुताबिक खैरात करना इस रात के अहम काम हैं। मालवा-निमाड़ में इस त्योहार पर तरह-तरह के स्वादिष्ट मिष्ठानों पर दिलाई जाने वाली फातेहा के साथ इसे मनाया जाता है। मुस्लिम धर्मावलंबियों के प्रमुख पर्व शब-ए-बरात के मौके पर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में शानदार सजावट हुई है तथा जल्से का एहतेमाम किया गया है। बता दें कि मुस्लिम धर्मावलंबी अपने उन परिजनों, जो दुनिया से रूख्श्त हो चुके हैं, उसकी मगफिरत की दुआएं करने के लिए कब्रिस्तान भी जाते हैं। हदीस में बयान किया गया है कि इस रात इस कायनात का मालिक पहले आसमान पर जलवागर होकर इंसानों को पुकारता है कि कोई मगफेरत तलब करे तो मैं उसको बख्श दूं, कोई रिज्क मांगे तो उसे रिज्क दूं, कोई बीमार दुआ करे तो मैं उसे शिफा बख्शूं। अल्लाह के रसूल मोहम्मद सल्ललाहोअलैहे वसल्लम फरमाया करते थे कि शाबान मेरा महीना है, रजब अल्लाह का महीना है और रमजान मेरी उम्मत का महीना है। शाबान गुनाहों को मिटाने वाला और रमजान पाक करने वाला है। लिहाजा इस रात जागकर घूमने-फिरने और पटाखे छोड़ने के बजाय जरूरत इसकी है कि पूरी रात मालिक से उसकी रहमत, उसके फजलो करम, उसकी बख्शीश और उसकी रजा तलब करें।
इस्लामी मान्यता के मुताबिक शब-ए-बरात की सारी रात इबादत और तिलावत का दौर चलता है। साथ ही इस रात मुस्लिम धर्मावलंबी अपने उन परिजनों, जो दुनिया से रूख्श्त हो चुके हैं, की मगफिरत की दुआएं करने के लिए कब्रिस्तान भी जाते हैं। अरब में यह लयलातुल बराह या लयलातून निसफे मीन शाबान के नाम से जाना जाता है, जबकि, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, अफगानिस्तान और नेपाल में शब-ए-बारात के नाम से जाना जाता है।
बेलाल अशरफ, जामा मस्जिद, पचरुखी
पिछले साल किए गए कर्मों का लेखा जोखा तैयार करने और आने वाले साल की तकदीर तय करने वाली इस रात को शब-ए-बरात कहा जाता है। इस रात को पूरी तरह इबादत में गुजारने की परंपरा है। नमाज, तिलावत-ए-कुरआन, कब्रिस्तान की जियारत और हैसियत के मुताबिक खैरात करना इस रात को अहम काम है।
अब्दुल करीम रिजवी, तरवारा
शब-ए-बरात कि रात कब्रिस्तान में जाकर पूर्वजों की बख्शीश की दुआ की जाएगी। इस बार पहली मई की रात को शब-ए- बरात है। इस संदर्भ में मिस्करही मस्जिद के इमाम हाफिज मोहम्मद शमीम ने कहा कि शाबान की पंद्रहवीं रात शब्दों ए बरसत में अल्लाह ताला भरपूर खैर एवं बरकत अता करते हैं। इस महीने की 15 मई रात शब-ए- बरात रहमत और बख्शीश की रात है। इसी रात को अल्लाह ताला अपने बंदों के लिए एक साल का रिज्क निर्धारित करते हैं। हदीस में है कि इस मुबारक रात में अल्लाह तआला अपने बंदों के लिए रहमत के तीन सौ दरवाजे खोल देते हैं और तमाम मुसलमानों को बख्श देते हैं, लेकिन बद मजहबों मुशरिकों जादूगरों शराबियों और बलात्कारियों की बख्शीश की कोई गुंजाइश नहीं होती। उन्होंने कहा कि इस रात में इबादत कर अपने और अपने पूर्वजों के लिए बख्शीश की दुआ की जाती है। अल्लाह ताला हर नेक दुआ को कबूल फरमाता है। यह रात मुकद्दस रात है। इस रात में ज्यादा से ज्यादा इबादत करनी चाहिए। कुरान शरीफ की तिलावत करना, फर्ज नमाज और नफिल नमाज कसरत से पढ़ना, मस्जिद में जाना और अल्लाह की याद में मशहूर रहना, कब्रिस्तान में जाना और अपने पूर्वजों की बख्शीश के लिए दुआ मांगना इस रात के बड़ी इबादत है।
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