तरवारा: रोजे और कुरआन बंदे की शफाअत के लिए अर्ज करेंगे: मौलाना अहमद सरफी

  • रोजे का सवाब रोजेदारों को मालूम चल जाये तो वो पूरी साल रोजा रखेंगे
  • रोजे अर्ज करेंगे कि ऐ अल्लाह मैंने इसको दिन में खाने और शहवत से रोका

✍️परवेज़ अख्तर/एडिटर इन चीफ:
तरवारा पंचायत के काजी टोला गांव स्थित मदरसा काजी हसन अनवारूल उलूम के हेडमास्टर मौलाना अहमद सरफी ने माहे रमजानुल मुबारक पर फजीलत बयान करते हुए कहा कि अल्लाह ताला को तीन चीज़े सबसे ज्यादा पसंद है,(जवानी की इबादत,सख्त गर्मी के रोज़े और सर्दी का वुजु) आज हम गर्मी के रोज़ों से डरते है के कमजोरी आ जाएगी या बीमार हो जाएंगे या फिर हमारी सेहत खराब हो जाएगी।हम कितने बुज़दिल है अल्लाह की इबादत से डरते है।जबकि ये महीना तो अल्लाह ने हमे आग से बचाने और अपनी रहमते अपने बंदों पर बरसाने के लिए बनाया है।हजरत उमर बिन अब्दुल्लाह (र.अ.) से रिवायत है कि नबी करीम (स.ल.) ने इरशाद फरमाया कयामत के दिन रोजे और कुरआन बंदे की शफाअत करेंगे,रोजे अर्ज करेंगे कि ऐ अल्लाह मैंने इसको दिन में खाने और शहवत से रोका।इसलिए तू इसके लिए मेरी शफाअत कुबूल फरमा और कुरआन कहेगा कि मैंने इसे रात में सोने से रोका।लिहाजा इसके हक में मेरी शफाअत कुबूल फरमा ले।इस दरम्यान दोनों की शफाअत कुबूल होगी।उन्होंने कहा कि रमजान तो एक इबादत है।

जब माज बिन जबल का इंतेकाल का हुआ तो आप कहने लगे के ऐ अल्लाह तू जानता है के मुझे अपनी ज़िंदगी से कितना प्यार था।अल्लाह की क़सम वो प्यार पैसों के लिए नहीं था,दुनिया के लिए नहीं था।बल्कि मुझे तो अपनी ज़िंदगी से प्यार था,तेरी बारगाह मे लंबे-लंबे सजदे करने के लिए मुझे प्यार था। सख्त गर्मी के रोज़े मे प्यास की शिद्दत को बर्दाश्त करने के लिए प्यार था।उन्होंने कहा की रमजान तो दीन का सुतून है,इस्लाम की बुनियाद 5 चीजों पर है।जिसमे रमजान भी शामिल है,हमारे प्यारे हबीब रसूल अल्लाह सल्ल.फरमाते है के अगर अल्लाह अपने रोजेदार बंदों को उनके रोज़े का बदला बता देते तो वो पूरी साल के रोज़े ना छोड़ते।रोज़े की फ़ज़ीलत इतनी बड़ी है के अगर अल्लाह अपने बंदों को बता दे की रमज़ान का बदला क्या है तो वो पूरी साल के रोज़े रखते।

उन्होंने रमजानुल मुबारक पर विस्तृत रूप से चर्चा करते हुए कहा कि बताया की एक छोटा सा वाक्या है की यमामा की जंग में 12 हजार सहाबा और भी बहुत सारे मोमिन बंदे थे।ये जंग बहुत ही खौफनाक थी।जिसमे 3 हजार शहीद हुए।जब झंडा जैद बिन खिताब से शहीद होकर गिर गया तो फिर झंडा हज़रत सालिम रजि. ने उठा लिया और जब वो बहुत जख्मी हो गए तो आपकी सांस अभी बाकी थी और आपका रोज़ा था तो एक सहाबी जख्मियों को पानी पीला रहे थे तो जब वे सालिम रजि.के पास पहुंचे तो आप सालिम रजि.को दिलासा देते हुए कहने लगे के हमने फतह पाई है पानी पिए या नहीं।तो आपका जवाब था।ये मेरी ढाल है अगर मैं जिंदा रहा तो इफ्तार कर लूँगा और अगर मर गया तो मै अल्लाह के दस्तरख्वान पर जाकर अफ़तार कर लूँगा।

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