गोपालगंज: बच्चों में कुपोषण और एनीमिया चिंता का प्रमुख कारण है और भारत सरकार इसे सुधारने के लिए कई पहल कर रही है। सर्वेक्षण के अनुसार, पांच साल से कम उम्र के 38 फीसदी बच्चे अविकसित हैं और 59 फीसदी बच्चे एनीमिक हैं, जो गंभीर है। कुपोषण और एनीमिया को कम करने के लिए पहल की श्रृंखला में से एक, भारत सरकार बाजरा की खपत पर जोर दे रही है। बाजरा पारंपरिक रूप से मनुष्यों द्वारा खाए जाने वाले पहले अनाज में से एक माना जाता है। हालांकि बाजरा पोषक तत्वों से भरपुर है, लेकिन जागरूकता और उपलब्धता के मुद्दों के कारण चावल और गेहूं की तुलना में उसकी खपत कम रही है। इसको बढ़ावा देने के लिए विभाग ने पहल शुरू की है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के सचिव अनिता करवाल और केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सचिव संजय अग्रवाल ने संयुक्त रूप से पत्र जारी कर आवश्यक दिशा-निर्देश दिया है।
स्वास्थ्य लाभों और खेती के लिए बाजरा के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना
जारी पत्र में कहा गया है कि बाजरा लस मुक्त, क्षारीय और मैग्नीशियम, पोटेशियम, कैल्सियम, मैंगनीज, ट्रिप्टोफैन, फास्फोरस, बी विटामिन, प्रोटीन और एंटीऑक्सिडेंट जैसे पोषक तत्वों से भरपुर होते हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हाल ही में भारत द्वारा प्रायोजित और 70 से अधिक देशों द्वारा समर्थित एक प्रस्ताव को अपनाया है, जिसमें 2023 को “बाजरा का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष” घोषित किया गया है। प्रस्ताव का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन द्वारा चिह्नित कठिन परिस्थितियों में बाजरा के स्वास्थ्य लाभों और खेती के लिए उनकी उपयुक्तता के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना है।
बाजरा खाना सांस्कृतिक रूप से स्वीकृत भोजन की आदत
प्रधान मंत्री पोषण शक्ति निर्माण (पीएम पोषण) योजना के तहत बाजरा शुरू करने की संभावनाओं का पता लगाने का प्रयास करें, अधिमानतः उन जिलों में जहां बाजरा खाना सांस्कृतिक रूप से स्वीकृत भोजन की आदत है। सबसे पहले आप सप्ताह में एक बार बाजरा (पोषक-अनाज) आधारित मेनू पेश कर सकते हैं। इसके अलावा, इसे लोकप्रिय बनाने के लिए रसोइया-सह-सहायकों के बीच आयोजित होने वाली खाना पकाने की प्रतियोगिताओं के दौरान बाजरा आधारित व्यंजन तैयार किए जा सकते हैं। भारत में उगाए और खाए जाने वाले प्रमुख बाजरा (पोषक-अनाज) हैं, ज्वार (ज्वार), मोती बाजरा (बाजरा), फिंगर बाजरा (रागी/मडुआ), फॉक्सटेल बाजरा (कंगनी/काकुन), कोडो बाजरा (कोडो), बरनार्ड बाजरा ( सावा/सांवा/झंगोरा), बाजरा (कुटकी), बक-गेहूं (कुट्टू), अमरनाथ (चौलाई) आदि।
वीडियो के माध्यम से स्कूलों में बच्चों को किया जायेगा जागरूक
पत्र के माध्यम से निर्देश दिया गया है कि बाजरा की अच्छाइयों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए छोटे वीडियो भी बना सकते हैं और उन्हें स्कूलों में दिखा सकते हैं। बाजरा के उपयोग/खपत पर एसएमसीएस और पीटीएम बैठकों के दौरान भी चर्चा की जा सकती है। बाजरा और उनके स्वास्थ्य लाभों को ‘समूह चर्चा, बच्चों के बीच वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में जागरूकता फैलाने के लिए’ विषय के रूप में चुना जा सकता है। आइए हम हाथ मिलाएं और कम ज्ञात बाजरा (पोषक-अनाज) को लोकप्रिय बनाने के इस महान कार्य में एक साथ काम करें, जो हमारे बच्चों के लाभ के लिए पोषक तत्वों के पावर हाउस हैं जो इस महान राष्ट्र के भविष्य हैं।
क्या है जिले का आंकड़ा
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण वर्ष 2019-20 के अनुसार जिले में 6 माह से 59 माह तक के 56.1 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से ग्रसित है। वहीं 15 से 49 वर्ष तक की 54.0 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं भी एनीमिया जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं। वहीं 15 से 49 वर्ष तक की 54.1 प्रतिशत महिला एनीमिक हैं।
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